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चतुर्थः पादः
पैशाची भाषा में, टु के स्थान पर तु विकल्प से आता है। उदा.-कुतुम्बकं,
कुटुम्बकं ।
क्त्वस्तून:॥ ३१२ ।। पैशाच्यां क्त्वाप्रत्ययस्य स्थाने तून इत्यादेशो भवति । 'गन्तून । रन्तून । हसितून । पठितून । कधितून ।
पैशाची भाषा में, क्त्वा प्रत्यय के स्थान पर तून ऐसा आदेश होता है। उदा०—गन्तून.. 'कधितून ।
धून-त्थूनौ ष्ट्वः ।। ३१३ ।। पैशाच्यां ष्ट्वा इत्यस्य स्थाने धून त्थून इत्यादेशौ भवतः । पूर्वस्यापवादः । नद्धन' नत्थन । तद्धन तत्थून ।।
पैशाची भाषा में, ष्ट्वा के स्थान पर धून और त्थून ऐसे आदेश होते हैं । पहले ( यानी सूत्र ४.३१२ में कहे हुए ) नियम का अपवाद प्रस्तुत नियम है। उदा०-नळून... ''तत्थून ।
र्यस्नष्टां रिय-सिन-सटाः क्वचित् ॥ ३१४ ॥ पैशाच्यां यस्तष्टां स्थाने यथासंख्यं रिय सिन सट इत्यादेशाः क्वचिद् भवन्ति । भार्या भारिया । स्नातम् सिनातं । कष्टं कसटं । क्वचिदिति किम् । सुज्जो। सूनुसा। तिट्रो।।
पैशाची भाषा में, र्य, स्न, और ष्ट इन ( संयुक्त व्यञ्जनों ) के स्थान अनुक्रम से रिय, सिन मौर सट ऐसे आदेश क्वचित् होते हैं। उदा.-भार्या'.. ... ... .... कसटं। क्वचित् ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण हमेशा ऐसे आदेश न होते, आगे कहे वर्णान्तर होते हैं । उदा०-) सुज्जो . निट्ठो ।
क्यस्येय्यः ॥ ३१५ ॥ पैशाच्या क्य-प्रत्ययस्य इय्य इत्यादेशो भवति । गिय्यते । दिय्यते। रमिय्यते । पठिय्यते।
पैशाची भाषा में, क्य ( प्रत्यय ) को इय्य ऐसा आदेश होता है। उदा --- गिम्यते... .' पठिय्यते । १. क्रम से :--/गम् । / रम् । । हस् । पठ् । /कथ् । '. क्रम से :-भष्ट्वा ( / नश् ) । तष्ट्वा ( /तक्ष् ) | दृष्ट्वा ( V दृश् ) ३. क्रम से :-सूर्य । स्नुषा । दृष्ट । ४. क्रम से :-/गे। /दा । रभ् । पिठ् ।
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