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चतुर्थः पादः
शौरसेमी भाषा के बारे में जो कुछ कार्य इस प्रकरण में कहा हुआ है, वह छोड़ कर अन्य कार्य प्राकृत के समान शौरसेनी भाषा में होता है । ( अभिप्राय ऐसा है :--- ) 'दीर्घ... ."वृत्ती' इस सूत्र से प्रारम्भ करके 'तो दोनादौ... ..'युक्तस्य' इस सूत्र के पूर्व तक जो सूत्र और उनके लिए जो उदाहरण दिए हुए हैं, उनमें से 'अमुक सूत्र जैसे के तैसे शौरसेनी को लागू पड़ते हैं,' ( और ) अमुक सूत्र मात्र ( कुछ फर्क से ) इसी प्रकार लागू पड़ते हैं,' इत्यादि विभाग प्रत्येक सूत्र का स्वयं ही विचार करके ( अभ्यूह्य ) दिखाए। उदा०--अन्दावेदी... .."मणसिला, इत्यादि ।
अत एत् सौ पुंसि मागध्याम् ॥ २८७ ॥ __ मागध्यां भाषायां सौ परे अकारस्य एकारो भवति पंसि पुल्लिगे। एष मेषः एशे मेशे। एशे। पुलिशे। करोमि भदन्त करेमि भन्ते । अत इति किम् । णिही । कली। गिली । पंसीति किम् । जलं। यदपि 'पोराणमद्धमागह भासानिययं हवइ सूत्तं' इत्यादिनार्णस्य अर्धमागधभाषानियतत्वमाम्नायि वृद्धस्तदपि प्रायोस्यैद विधानान्न वक्ष्यमाणलक्षणस्य। कयरे आगच्छइ। से तारिसे दुक्खसहे जिइन्दिए । इत्यादि । ___मागधी भाषा में, पुंसि यानी पुल्लिग में, सि ( प्रत्यय ) आगे होने पर, ( शब्द के अन्त्य ) अकार का एकार होता है। उदा०---एष... .. 'भन्ते । अकार का ( एकार होता है ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण अन्य स्वरों का एकार नहीं होता है । उदा०-- ) णिही... . गिली । पुल्लिग में ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण अन्य लिंगों में ऐसा एकार नहीं होता है। उदा.-- ) जलं। ( जैन धर्मियों के ) प्राचीन सूत्र अर्ध मागध भाषा में हैं इत्यादि वचन से वृद्ध पुरुषों ने यद्यपि आर्ष यानी अधं मागध भाषा है ऐसा कहा है, तथापि वह भी प्रायः ( अभी प्रस्तुत स्थान में बताए हुए इस ) नियम के अनुसार है, ( यहाँ से आगे ) कहे जाने वाले नियमों के अनुसार नहीं है ( यह ध्यान में रखे । ) उदा०--कयरे'.. ..'जिइन्दिरा, इत्यादि ।
रसोर्लशौ ॥ २८८ ॥ मागध्यां रेफस्य दन्त्यसकारस्य च स्थाने यथासंख्यं लकारस्तालव्य१. एषः पुरुषः। २. क्रम से :--निधि । करिन् । गिरि । ३. क्रम से :--कतरः आगच्छति । सः तादृशः दुःखसहः जितेन्द्रियः ।
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