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प्राकृतव्याकरणे
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तनेस्तड-तडु-तड्डव-विरलाः ।। १३७ ॥ तनेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति । तडइ। तड्डइ । तड्डवइ। विरल्लइ । तण।
तन् धातु को ( तड, तड्डु, तड्डव और विरल्ल ऐसे ) ये चार आदेश विकल्प से होते हैं । उदा.-तडइ 'विरल्लइ । ( विकल्प-पक्ष में ):-तणइ ।
तृपस्थिप्पः ।। १३८ ॥ तृप्यते स्थिप्प इत्यादेशो भवति । थिप्पइ। तृप्यति ( Vतृप् ) धातु को थिष्प बादेश होता है : उदा.-पिप्पा ।
उपसरल्लिअः॥ १३९ ॥ उपपूर्वस्य सृपेः कृतगुणस्य अल्लिअ इत्यादेशो वा भवति । अल्लिअइ। उवसप्पइ।
उप ( यह उपसर्ग ) पूर्व में होने वाले और जिसमें गुण किया हुआ है, ऐसे सृप धातु को अल्लिअ आदेश विकल्प से होता है । उदा०--अल्लिअइ। ( विकल्प पक्ष में ):---उवसप्पइ ।
संतपेझङ्खः ।। १४० ॥ सन्तपेझंङ्ख इत्यादेशो वा भवति । झङ्खइ । पक्षे । सन्तप्पइ ।
सन्तप् धातु को झल ऐसा आदेश विकल से होता है। उदा०-मखा। (विकल्प-) पक्ष में :-सन्तप्पइ ।
व्यापेरोअग्गः ॥ १४१ ॥ व्याप्नोतेरो अग्ग इत्यादेशो वा भवति । ओ अग्गइ । वावेइ ।
व्याप्नोति ( V व्याप ) धातु को ओअग्ग ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा०-ओअग्गइ । ( विकल्प-पक्ष में ) :-वावेइ ।
समापेः समाणः ।। १४२ ।। समाप्नोतेः समाण इत्यादेशो वा भवति । समाणइ । समावेइ ।
समाप्नोति ( Vसमाप् ) धातु को समाण ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा.-समाणइ । ( विकल्प-पक्ष में ):-समावेइ।
१४ प्रा. व्या.
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