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प्राकृतव्याकरणे
आ कुगो भूतभविष्यतोश्च ।। २१४ ।।
कृगोन्त्यस्य आ इत्यादेशो भवति भूतभविष्यत्कालयोश्चकारात् क्त्वातुम्तव्येषु च । काहीअ अकार्षीत् अकरोत् चकार वा । काहिइ करिष्यति कर्ता वा । क्त्वा । काऊ । तुभ् | काउं तव्य । कायव्वं ।
भूतकाल और भविष्यकाल ( इनके प्रत्यय आगे ) होने पर, तर्थव ( सूत्र में से ) चकार के कारण, क्त्वा, तुम और तव्य ( ये प्रत्यय आगे ) होने पर, कृ धातु के अन्त्य वर्ण को आ ऐसा आदेश होता है : उदा० ( भूतकाल में ) : --- काहीअ (यानी ) अकार्षीत् अकरोत् अथवा चकार ( ऐसा अर्थ है ) | ( भविष्यकाल में ) - काहिइ ( यानी ) करिष्यति किंवा कर्ता । ऐसा अर्थ है ) । क्त्वा ( प्रत्यय आगे होने पर ) :काऊ । सुम् ( प्रत्यय आगे होने पर : --- का उं । तथ्य ( प्रत्यय आगे होने पर ) :
) :
कायव्वं ।
गमिष्यमासां छः || २१५ ।।
एषामन्त्यस्य छो भवति । गच्छइ । इच्छइ । जच्छइ । अच्छइ ।
( गम्, इष्, यम् और आस्) इन धातुओं के अन्त्य वर्ण का छ होता है । उदा०-
गच्छइ
अच्छइ ।
छिदिभिदोन्दः || २१६ ॥
अनयोरन्त्यस्य नकाराक्रान्तो दकारो भवति । छिन्दइ ।
( छिंद और भिद् ) इन धातुओं के अन्त्य वर्ण का नकार से युक्त दकार ( =न्द ) होता है । उदा०--- -- छिन्दइ, भिन्दइ ।
युधबुधगृधधसिधमुहां ज्झः ॥ २१७ ॥
एषामन्त्यस्य द्विरुक्तो झो भवति । जुज्झइ । बुज्झइ । गिज्झइ । कुज्झइ । सिज्झइ | मुज्झइ ।
( युध्, बुध् गृध्, क्रुध्, सिधू और मुट् ) इन धातुओ के अन्त्य वर्णं का द्विरुक्त झ
(
= ज्झ ) होता है उदा०-- जुज्झइ
!
२२३
मुज्झइ
रुधोन्धम्भौ च ।। २९= ॥
रुधोन्त्य स्यन्ध भ इत्येतौ चकारात् ज्झश्व भवति । रुन्धइ । रुम्भइ । रुज्झइ ।
रुध् धातु के अन्त्य वर्ण को न्ध और म्भ ऐसे ये ( दो ) और (सूत्र में से ) चकार के कारण ज्झ ( ऐसे आदेश होते हैं ) । उदा०-- हन्वइ
'रुज्झइ ।
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