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चतुर्थः पादः
भी होता है। ( अतः ) बलइ ( यानी ) खादति ( = खाता है ) अथवा प्राणनं करोति ( = श्वासोच्छ्वास करता है )। इसी प्रकार, कल् ( कलि ) धातु संख्यान (= गणना) तथैव संज्ञान ( अर्थों ) में भी होता है। उदा०-कलइ ( यानी ) जानाति ( = जानना है ) अथवा संख्यानं करोति । = गणना करता है)। रिग ( रिगि ) धातु गति ( तथैव ) प्रवेश ( इन अर्थों में ) में भी होता है । उदा०-- रिगइ ( यानी ) प्रविशति ( = प्रवेश करता है ) अथवा गच्छति ( = जाता है)। प्राकृत में काङ्क्षति ( /काङ्क्ष ) धातु को वम्फ आदेश होता है। वम्फइ; इस का अर्थ इच्छति ( = इच्छा करता है ) अथवा खादति ( = खाता है ) ( ऐसा होता है )। ( प्राकृत में ) फक्कति ( /फक्क् ) धातु को थक्क आदेश होता है । थक्क इ ( यानी ) नीचां गति करोति ( = नीचे गमन करता है ) अथवा विलम्बयति . = विलम्ब करता है ) ( ऐसा अर्थ होता है ) । ( प्राकृत में ) विलप् ( विलपि ) और उपालम्भ ( उपालभ्भि ) इन धातुओं को झङ्ख ऐसा आदेश होता है। झङ्खइ ( यानी ) विलपति ( = विलाप करता है), उपालभते ( निन्दा करता है ), अथवा भाषते (= बोलता है) (ऐसे अर्थ होते हैं ) । इसी प्रकार :पडिवालेइ ( यानी ) प्रतीक्षते ( = प्रतीक्षा करता ) अथवा रक्षति ( = रक्षण करता है ) ( ऐसे अर्थ होते हैं )। कुछ ( विशिष्ट ) उपसर्गों से युक्त होने वाले कुछ ( विशिष्ट ) धातु ( विशिष्ट ऐसे ) निश्चित अर्थ में ( प्राकृत में होते हैं )। उदा.---पहरइ ( यानी ) युध्यते ( = युद्ध करता है ); संहरति ( यानी संवृणोति ( = ढकता ); अणुहरइ ( यानो) सदृशोभवति ( = सदृश होता है ); नीहरइ (यानी) पुरीषोत्सर्ग करोति ( = मलोत्सर्ग करता है); विहरई (यानो) क्रीडति ( = खेलता है ); आहरइ ( यानी ) खादति ( = खाता है ); पहिहरइ ( यानी ) पुनः पूरयति ( - पुनः पूर्ण करता है ); परिहरइ ( यानी ) त्यजति ( = त्याग करता है ); उवहरइ ( यानी ) पूजयति ( = पूजा करता है ); वाहरइ (यानी) आह्वयति ( = बुलाता है ); पवसइ ( यानी ) देशान्तरं गच्छति ( = अन्य देश में जाता है ); उच्चुणइ ( यानी ) चटति ( = चाटता है ); उल्लुहइ (यानी ) निःसरति ( = बाहर निकलता) है।
तो दोनादौ शौरसेन्यामयुक्तस्य ॥ २६० ॥ शौरसेन्यां भाषायामनादावपदादौ वर्तमानस्य तकारस्य दकारो भवति, न चेदसौ वर्णान्तरेण संयुक्तो भवति । तदो पूरिदपदिशेण' मारुदिणा मन्तिदो। एतस्मात् एदाहि एदाहो। अनादाविति किम् । तधा करेध जधा२ तस्स १. ततः पूरितप्रतिज्ञेन मारुतिना मन्त्रितः । २. तथा कुरुत यथा तस्य राज्ञः अनुकम्पनीया भवामि ।
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