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प्राकृतव्याकरण
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शौरसेनी भाषा में, र्य के स्थान पर य्य विकल्प से होता है। उदा.--अय्य उत्त..."सुय्यो । (विकल्प-) पक्ष में:--अज्जो'... 'परवसो ।
थो धः ॥ २६७ ॥ शौरसेन्यां थस्य धो वा भवति । कधेदि कहेदि । णाधो णाहो । कधं कहं। राजपधो राजपहो । अपदादावित्येव । थामं । थेओ।
शौरसेनी भाषा में, ( पद के आदि न होनेवाले ) थ का ध विकल्प से होता है । उदा.--कधेदि:.... राजपहो । पदके आदि न होनेवाले ( थ का ही ध होता है, पद के प्रारम्भ में होनेवाले थ का ध नहीं होता है । उदा०--) थाम, थेओ ।
इहहचोहस्य ॥ २६८ ॥ इह शब्द सम्बन्धिनो मध्यमस्थेत्थाहचौ [ ३.१४३ ] इति विहितस्य हचश्च हकारस्य शौरसेन्यां धो वा भवति । 'इध । होध । परित्तायध । पक्षे । इह । होह । परित्तायह ।
शौरसेनी भाषा में, इह शब्द से संबंधित होनेवाले (ह), तथैव 'मध्यम ..."हच्ची सूत्र में कहे हुए हच में से (ह), इन दोनों हकार का ध विकल्प से होता है । उदा०इध.."परित्तायध । (विकल्प--) पक्ष में:---इह .''परित्तायह ।
भुवो भः ॥ २६९ ॥ भवते हकारस्य शौरसेन्यां भो वा भवति । भोदि होदि । भुवदि हुवदि। भवदि हवदि।
शौरसेनी भाषा में, भवति (V भू) धातु के हकार का भ विकल्प से होता है । उदा०-भोदि....'हवदि ।
पूर्वस्य पुरवः ॥ २७०॥ शौरसेन्यां पूर्वशब्दस्य पुरव इत्यादेशो वा भवति । अपुरवं नाडयं अपुरवागदं । पक्षे। अपुव्वं पदं । अपुव्वागदं ।
शौरसेनी भाषा में, पूर्व शब्द को पुरव ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा.अपुरवं...''गदं । (विकल्प-) पक्ष में:--अपुन्वं... 'गदं । १. क्रमसे:-- कथ । नाथ । कथम् । राजपथ । २. क्रमसे:---स्थाम । स्तोक । ३. क्रमसेः--इह । /हो (भू)। परि + । ४. क्रमसे:--अपूर्व नाटकम् । अपूर्वागतम् । ५. क्रभसेः--अपूर्व पदम् । अपूर्वागत
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