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प्राकृतव्याकरण
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राइणो अशुकम्पणीआ भोमि । अयुक्तस्येति किम् । 'मत्तो। अय्यउत्तो। असम्भाविद सक्कारं । हला स उन्तले।
शौरसेनी भाषा में, अनादि होने वाले ( यानो ) पद के आदि न होने वाले तकार का, यदि वह (तकार ) अन्य वर्गों से संयुक्त न हो, तो ( उस तकार का) दकार होता है। उदा.-तदौ... ..."एदादो। अनादि ( होने वाले तकार का) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण यदि तकार पद का आदि हो, तो उसका दकार नहीं होता है । उदा०:-) तधा'.. .."भोमि । असंयुक्त ( तकार का ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण तकार संयुक्त हो, तो उसका दकार नहीं होता है । उदा.-) नत्तो ... .."सउन्तले ।
अधः क्वचित् ।। २६१ ॥ वर्णान्तरस्याधो वर्तमानस्य तस्य शौरसेन्यां दो भवति । क्वचिल्लक्ष्यानुसारेण । महन्दो निच्चिन्दो । अन्देउरं।
शौरसेनी भाषा में, ( एकाध ) अन्य वर्ण के अनन्तर होने वाले ( यानी संयुक्त होने वाले ) तकार का द होता है। ( सूत्र में से ) क्वचित् ( शब्द का अभिप्राय है कि उपलब्ध ) उदाहरणों के अनुसार । उदा.-महन्दो... ."अन्देउरं ।।
वादेस्तावति ।। २६२ ।। शोरसेन्या तावच्छब्दे आदेस्तकारस्य दो वा भवति । दाव । ताव ।
शौरसेनी भाषा में, तावत् शब्द मे आदि ( होने वाले ) तकार का द विकल्प से होता है । उदा०-दाव, ताव ।
__ आ आमन्त्र्ये सौ वेनो नः ।। २६३ ॥ शौरसेन्यामिनो नकारस्य आमन्त्र्ये सौ परे आकारो वा भवति । भो कञ्चुइआ । सुहिआ। पक्षे। भो तवस्सि । भो भणस्सि।
शौरसेनी भाषा में, ( शब्द के अन्त्य ) इन में से नकार का सम्बोधन अर्थ में होने वाले ) सि ( प्रत्यय ) आगे होने पर, विकल्प से आकार होता है। उदा.भोकञ्चुइमा, सुहिआ। (विकल्प-) पक्ष में :--पक्ष में :--भो तवस्सि, नो भणसि । १. क्रम से : --मत्त । आर्यपुत्र । असम्भावित--सत्कारम् । हला शकुन्तले । २. क्रम से :-महत् । निश्चिन्त । अन्तःपुर । ३. क्रम से : ---भोः कञ्चुकिन् । सुखिन् । ४. क्रम से :-भो तपस्विन् । भो मनस्विन् ।
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