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________________ प्राकृतव्याकरणे २.. . तनेस्तड-तडु-तड्डव-विरलाः ।। १३७ ॥ तनेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति । तडइ। तड्डइ । तड्डवइ। विरल्लइ । तण। तन् धातु को ( तड, तड्डु, तड्डव और विरल्ल ऐसे ) ये चार आदेश विकल्प से होते हैं । उदा.-तडइ 'विरल्लइ । ( विकल्प-पक्ष में ):-तणइ । तृपस्थिप्पः ।। १३८ ॥ तृप्यते स्थिप्प इत्यादेशो भवति । थिप्पइ। तृप्यति ( Vतृप् ) धातु को थिष्प बादेश होता है : उदा.-पिप्पा । उपसरल्लिअः॥ १३९ ॥ उपपूर्वस्य सृपेः कृतगुणस्य अल्लिअ इत्यादेशो वा भवति । अल्लिअइ। उवसप्पइ। उप ( यह उपसर्ग ) पूर्व में होने वाले और जिसमें गुण किया हुआ है, ऐसे सृप धातु को अल्लिअ आदेश विकल्प से होता है । उदा०--अल्लिअइ। ( विकल्प पक्ष में ):---उवसप्पइ । संतपेझङ्खः ।। १४० ॥ सन्तपेझंङ्ख इत्यादेशो वा भवति । झङ्खइ । पक्षे । सन्तप्पइ । सन्तप् धातु को झल ऐसा आदेश विकल से होता है। उदा०-मखा। (विकल्प-) पक्ष में :-सन्तप्पइ । व्यापेरोअग्गः ॥ १४१ ॥ व्याप्नोतेरो अग्ग इत्यादेशो वा भवति । ओ अग्गइ । वावेइ । व्याप्नोति ( V व्याप ) धातु को ओअग्ग ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा०-ओअग्गइ । ( विकल्प-पक्ष में ) :-वावेइ । समापेः समाणः ।। १४२ ।। समाप्नोतेः समाण इत्यादेशो वा भवति । समाणइ । समावेइ । समाप्नोति ( Vसमाप् ) धातु को समाण ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा.-समाणइ । ( विकल्प-पक्ष में ):-समावेइ। १४ प्रा. व्या. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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