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चतुर्थः पादः प्रभुकत॒कस्य भुवो हुप्प इत्यादेशो वा भवति । प्रभुत्वं च प्रपूर्वस्यवार्थः । अङ्गे च्चिअ न पहुप्पइ । पक्षे । पभवइ ।
प्रभावो | समर्थ होना इस कर्तरि अर्थ में होने वाले भू (धातु ) को हुप्प ऐसा आदेश विकल्प से होता है। समर्थ होना यह अर्थ प्र ( उपसर्ग ) पूर्व में होने काले भू धातु का है । उदा०--अङ्गे.. ." पहुप्पइ । ( विकल्प ) पक्ष में :पभवेइ।
क्ते हूः ॥ ६४ ॥ भुवः क्त प्रत्यये हूरादेशो भवति । हूअं । अणुहूअं । पहूअं ।
भू (धातु) के आगे क्त प्रत्यय होने पर, (भू को ) हू आदेश होता है । उदा०हुर्भ... ."पहू।
.. कुगेः कुणः ॥ ६५ ॥ कृगः कुण इत्यादेशो वा भवति । कुणइ । करइ ।
क (ग ) धातु को कुण ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा.-कुणइ । (विकल्प-पक्ष में :-) करइ ।
काणेक्षिते णिआरः ॥६६॥ काणेक्षितविषयस्य कृगो णिआर इत्यादेशो वा भवति । गिआरइ । काणेक्षितं करोति। ___ काणेक्षित-विषयक कृ धातु को णिआर ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा.णिआरइ ( यानी ) काणेक्षितं करोति ( ऐसा अर्थ है )।
निष्टम्भावष्टम्मे णिछह-संदाणं ॥ ६७ ॥ निष्टम्भविषयस्यावष्टम्भ विषयस्य च कृगो यथासंख्यं णिठ्ठह संदाण इत्यादेशौ वा भवतः । णिठ्ठहइ। निष्टम्भं करोति । संदाणइ । अवष्टम्भं करोति।
निष्टंभ-विषयक और अवष्टंभ-विषयक कृ धातु को अनुक्रम से णिठ्ठह और संदाण ऐसे ये आदेश विकल्प से होते हैं । उदा०-णिठ्ठहइ ( यानी ) निष्टम्भं करोति ( ऐसा अर्थ है)। संदाणइ ( यामो) अवष्टम्भं करोति ( ऐसा अर्थ है)। १. अङ्गे एव न प्रभवति । २. क्रम से :-भूत । अनुभूत । प्रभूत ।
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