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तृतीय: पाद:
इच् इत्यादि भविष्यकाल के आदेश ( आगे ) होने पर, श्रु इत्यादि ( यानी श्रु, गम्, रुद्, विद्. दृश्, मुच् वच् छिद्, भिद् और भुज् इन ) धातुओं के स्थान पर सोच्छ इत्यादि ( यानी सोच्छ, गच्छ, रोच्छ, वेच्छ, दच्छ, मोच्छ, बोच्छ, बेच्छ, भेच्छ और भोच्छ ) होते हैं। यानी अन्त्य स्वर इत्यादि अवयव छोड़कर, वे ही आदेश होते हैं, ऐसा अर्थ है । और ( इस समय ) हि ( इस अक्षर ) का लोप विकल्प से होता है । उदा०----: -सोच्छिइ; ( विकल्प - ) पक्ष में:- सोच्छिहिइ । इसी प्रकारः सोच्छिन्ति "सोच्लिहित्था; इसी प्रकार मु और म ( इन प्रत्ययों ) के बारे में भी ( जाने ) । गच्छ ''गच्छिहित्था; इसी प्रकार मु और म ( इन प्रत्ययों) के बारे में भी ( जाने) इसी प्रकार रुद् इत्यादि (धातुओं के रूपों के उदाहरण लें ।
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दुसुम विध्यादिष्वेकस्मिंस्त्रयाणाम् १७३ ।।
विध्यादिष्वर्थेषूत्पन्नानामेकत्वेर्थे वर्तमानानां त्रयाणामपि त्रिकाणां स्थाने यथासंख्यं दु सु मु इत्येते आदेशा भवन्ति । हसउ सा । हससु तुमं । हसामु अहं । पेच्छर पेच्छ्सु पेच्छाम् । दकारोच्चारणं भाषान्तरार्थम् ।
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विधि, इत्यादि अर्थों में उत्पन्न हुए और एकस्व अर्थ में होने वाले त्रयों के त्रिकों के स्थान पर अनुक्रम से दु, सु और मु ऐसे आदेश होते हैं । उदा० - हसमु" पेच्छामु | { टु में ) दकार का उच्चारण अन्य ( यानी शौरसेनी ) भाषा के लिए है ।
सोहिं ।। १७४ ॥
पूर्वसूत्रविहितस्य सो : स्थाने हिरादेशो वा भवति । देहि । देसु । कहे हुए सु ( इस आदेश ) के स्थान पर 'हि'
पिछले (यानी ३०१७३ ) सूत्र में ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा - देहि, देसु ।
अत इज्ज स्विज्जहीज्जेलुको वा ।। १७५ ।।
अकारात् परस्य सो: इज्जसु इज्जहि इज्जे इत्येते लुक् च आदेशा वा भवन्ति । हसेज्जसु हसेज्जहि हसेज्जे हस । पक्षे । हससु । अत इति किम् । हो । ठाहि ।
( अकारान्त धातु के अन्त्य ) अकार के आगे आने वाले सु ( इस आदेश ) के इज्ज, इनहि, इज्जे ऐसे ये ( तीन ) और लोप ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं । उदा०- - हसेज्जसु हस । ( विकल्प - ) पक्षमे :- हससु । अकार के ( आगे माने वाले ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण अन्य स्वरों के आगे सु के इज्जसु इत्यादि आदेश नहीं होते हैं । उदा० ) होसु, ठाहि ।
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