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चतुर्थ. पादः
निर् (उपसर्ग) पूर्व में होनेवाले मिमीति (V मा) को निम्माण और निम्मव ये भादेश होते हैं । उदा.-निम्माणइ, निम्मबइ ।
क्षेणिज्झरो वा ॥ २० ॥ क्षयतेणिज्झर इत्यादेशो वा भवति । णिज्झरइ । पक्षे । झिज्जइ ।
क्षति ( /क्षि ) को णिज्झर ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा.गिज्झरइ । (विकल्प-) पक्ष में:-झिज्जइ :
छदणेणमनूभसन्नुमढक्कौम्बालपव्वालाः ॥ २१ ॥ छदेय॑न्तस्य एते षडादेशा वा भवन्ति । णुमइ । नूमइ । णत्वे मइ । सन्नमइ । ढक्कइ । ओम्बालइ । पव्वालइ । छायइ। .. प्रेरक (=प्रयोजक) प्रत्यय अन्त में होनेवाले छदि (४द् ) धातु को ( णुम, नूम, सन्नम, ढक्क, ओम्बाल और पव्वाल ऐसे ) ये छः आदेश विकल्प से होते हैं । उदा.णुमइ, नूमइ; ( नूम में से न का ) ण होने पर, णूमद; सन्नुमइ" .''पग्वालइ । (विकल्प-पक्ष :-) छायइ ।।
. निविपत्योणिहोडः॥ २२ ॥ निवृगः पतेश्च ण्यन्तस्य णि होड इत्यादेशो वा भवति । णि होडइ । पक्षे । निवारेइ । पाडेइ।
प्रेरक प्रत्यय अन्त में होने वाले निवृ ( निगः) और पत् ( पति ) इन धातुओं को णिहोड ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा.-णिहोड। ( विकल्प-) पक्ष में :-निवारेइ । पाडेइ ।
दूङो दूमः ॥ २३ ॥ दूङो ण्यन्तस्य दूम इत्यादेशो भवति । दूमेइ मज्झ' हि अयं ।
प्रेरक प्रत्यय के अन्त में होने वाले दू ( दूङ ) धातु को दूम ऐसा आदेश होता है । उदा.-दूमेइ... ..हि अयं ।
धवलेवुमः ॥ २४ ॥ धवलयतेय॑न्तस्य दुमादेशो वा भवति । दुमइ । धवलइ। स्वराणां स्वरा (बहुलम् ) ( ४.२३८ ) इति दीर्घत्वमपि । दूमि । धवलितमित्यर्थः।।
प्रेरक प्रत्ययान्त धवलयति (धातु ) को दुम ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा०-दुम । ( विकल्प पक्ष में ):-धवलइ । 'स्वराणां स्वरा ( बहुलम् )
१. मम हृदयम् ।
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