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तृतीयः पादः
अर्थ इनके बारे में भी होते हैं, ऐसा दूसरे वैयाकरण मानते हैं ( उनके मतानुसार:- ) होज यानी भवति * अभविष्यत् ऐसा अर्थ है ।
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मध्ये च स्वरान्ताद् वा ।। १७८ ॥
स्वरान्ताद् धातोः प्रकृतिप्रत्ययोर्मध्ये चकारात् प्रत्ययानां च स्थाने अन ज्ना इत्येतौ वा भवतः वर्तमानाभविष्यन्त्योविध्यादिषु च । वर्तमाना । होज्जइ होज्जाइ होज्ज होज्जा । पक्षे । होइ । एवम् । होज्जसि होज्नासि होज्ज होज्ज । पक्षे । होसि । एवम् । होज्जहिसि होज्जाहिसि होज्ज होज्जा हो हिसि । होज्जहिमि होज्जाहिमि होज्जस्सामि होज्जहामि होज्जस्सं होज्ज होज्जा । इत्यादि । विध्यादिषु । होज्जउ होज्जाउ होज्ज होज्जा, भवतु भवेद् वेत्यर्थः । पक्षे । होउ । स्वरान्तादिति किम् । हसेज्ज हसेज्जा । तुवरेज्ज तुवरेज्जा ।
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वर्तमानकाल और भविष्यकाल इनमें तथैव विधि इत्यादि ( अर्थी ) में, स्वरान्त धातु के बारे में, ( धातु की ) प्रकृति और प्रत्यय इनके बीच, तर्थव ( सूत्र में से ) चकार के कारण प्रत्ययों स्थान पर, ज और ना ऐसे ये शब्द विकल्प से आते 1 उदा० - वर्तमानकालमें : ---- होबइ ... "होना; ( विकल्प - ) पक्षमें: - होइ । इसी प्रकारः -- होलसि होना; ( विकल्प ) पक्षमें: - होसि । इसी प्रकार (भविष्य - काल में ) : - होन हिसि "होजा, इत्यादि । विधि इत्यादि में: होनउ होना (यानी ) भवतु किंवा भवेत् ऐसा अर्थ है; ( विकल्प - ) पक्ष में: - होउ । स्वरान्त धातु के बारे में ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण धातु स्वरान्त न हो, तो ऐसा प्रकार नहीं होता है । उदा० - -) हसेल.
"तुवरेना । क्रियातिपत्तेः ।। १७९ ॥
क्रियातिपत्तेः स्थाने ज्जज्जावादेशौ भवतः । होज्ज होज्जा । अभविष्यदित्यर्थः । जइ होज्ज' वण्णणिज्जो ।
क्रियातिपत्ति (= संकेतार्थ) के स्थान पर ज और जा (ऐसे ये ) आदेश होते हैं । उदा० होन होना (यानी ) अभविष्यत् ऐसा अर्थ है । जइहोन वण्णणियो ।
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न्त माणौ ॥ १८० ॥
क्रियातिपत्तेः स्थाने न्त-माणी आदेशौ भवतः । होन्तो होमाणो, अभविष्यद् इत्यर्थः ।
१. यदि अभविष्यत् बर्णनीयः ।
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