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प्राकृतव्याकरणे
भ्रमेराडो वा ।। १५१ ।।
भ्रमः परस्य णेराड आदेशो वा भवति । भमाडइ भमाडेइ । पक्षे भामेइ मावइ भमावेइ ।
भ्रम ( धातु ) के आगे आनेवाले णि ( प्रत्यय ) को आड ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा०- - ममाडइ, भमाडेइ । ( विकल्प - ) पक्षमें: भामेइ ...भावेइ |
लुगावी भावकर्मसु ॥
१५२ ॥
: स्थाने लुक् आवि इत्यादेशौ भवतः क्ते भावकर्मविहिते च प्रत्यये परतः । कारिअं कराविअं । हासिअं हसाविअं । खामिअं 'खमाविअं । भावकर्मणोः । कारीबइ करावी अइ । कारिज्जइ कराविज्जइ । हासी अइ हसावी अइ । हासिज्ज हसाविज्जइ ।
क्त तथा भाव और कर्म इनके लिए कहे हुए प्रत्यय आगे होने पर, णि ( प्रत्यय ) के स्थान पर लोप और आवि ऐसे आदेश होते हैं । उदा०-- ( क्तप्रत्यय आगे होने पर ) : --- कारिअं खमाविअं । भाव कर्म प्रत्यय ( आगे होने पर ) : कारोअइ. हसाविण्जइ ।
१७३
अल्लुक्यादेरत आ: ।। १५३ ।।
बेल्लोपेषु कृतेषु आदेरकारस्य आ भवति । अति पाडइ | पारइ । एति । काइ' | खामेइ | लुकि । कारिअं । खामिअं । कारी अइ खामी अइ । कारिखजइ खामिज्जइ । अदेल्लुकीति किम् । कराविअं । करावी अइ कराविज्जइ । आदेरिति किम् । संगामेइ' । इह व्यवहितस्य मा मूत् । कारिअं । इहान्त्यस्य मा भूत् । अति इति किम् । दूसेइ" । केचित् तु आवे भाव्यादेशयोरप्यादेरत आत्वमिच्छन्ति । कारावेइ । हासाविओ जणो 'सामलीए ।
कारिअं ..
fr ( प्रत्यय ) के अ, ए और लोप किए जाने पर, ( धातु में ) आदि ( होनेवाले ) अकार का आकार होता है । उदा०-- अ किए जाने परः -- - पाढइ, माडइ । ए किए जाने पर : --- कारेइ, खामेइ । लोप किए जाने परः ...खामिज्जइ । (णि प्रत्यय के ) अ, ए और लोप किए जाने पर ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण वैसा न हो, तो आदि अकार का आकार नहीं होता है । उदा०- ) कराविअं कराविज्जइ । आदि ( होनेवाले अकार का आकार होता है ) ऐसा क्यों कहा है ? कारण 'संगामेइ'
१. क्षामित ।
क्रमसे: V | Vक्षम् । ५. दुष् ।
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२. क्रमसे: - /पत् । भृ । ४ संग्राम |
६. हासितः जनः श्यामलया ।
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