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प्रथमः पादः
पापद्धि शब्द में पद के आदि न होने वाले पकारका र होता है। उदा०-- पारद्धी।
फो भहौ ॥ २३६ ।। स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेः फस्य भहौ भवतः । क्वचिद् भः । रेफः रेभो। शिफा सिभा । क्वचित्तु हः । 'मुत्ताहलं । क्वचिदुभावपि । सभलं' सहलं। सेभालिआ सेहालिआ। सभरी सहरी। गुभइ गुहइ । स्वरादित्येव । गंफट । असंयुक्तस्येत्येव । पूप्फं । अनादेरित्येव । चिठइ५ फणी। प्राय इत्येव । कसण फणी।
- स्वर के आगे होने वाले, असंयुक्त, अनादि फ के भ और ह होते हैं। क्वचित् (फ का ) भ होता है। उदा० - रेफ: 'सिभा । परन्तु क्वचित् (फ का ) ह होता है। उदा०मुत्ताहलं क्वचित् (फ के भ और ह ) दोनों भी होते हैं। उदा-सभलं... मुहइ । स्वर के आगे ( फ होने पर ही ये विकार होते हैं, पीछे अनुस्वार होने पर ये विकार नहीं होते हैं । उदा: --- ) गुंफइ । (फ ) असंयुक्त होने पर ही ( ये विकार होते हैं; फ संयुक्त होने पर, ये विकार नहीं होते हैं। उदा०-- ) पुष्पं । (फ) अनादि होने पर ही ( ये विकार होते हैं; फ आदि होने पर, ये विकार नहीं होते हैं । उदा० ---- ) चिट्ठइ फणी । प्रायः ही (फ के ये विकार होते हैं; कभी वे होते भी नहीं हैं। उदा०- ) कसणफणी।
बो वः ॥ २३७ ॥ स्वरात् परस्यासंयुक्तस्यानादेबस्य वो भवति । अलाबू अलावू अलाऊ । शबल: सवलो।
स्वर के आगे होने वाले, असंयुक्त, अनादि ब का व होता है । उदा--अलाबू.. सवलो।
विसिन्यां भः ॥ २३८॥ बिसिन्यां बस्य भो भवति । भिसिणी। स्त्रीलिंगनिर्देशादिह न भवति । बिस तन्तुपेलवाणं ।।
बिसिनी शब्द में ब का भ होता है। उदा०-भिसिणी । (सूत्र में बिसिनी ऐसा) स्त्रीलिंग का यानी स्त्रीलिंगी शब्द का निर्देश होने से, यहाँ (यानी आगे दिए उदाहरण में ब का भ नहीं होता है ! उदा०- ) बिस ' पेलवाणं । १. मुक्ताफल । २. कलसे--सफल । शेफालिका । शफरी । गुफति । २. गुम्फति
४. पुष्प । ५. तिष्ठति फणी । ६. कृष्णफणी । ७. बिसतन्तुपेलवानाम् । Jain Education International
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