________________
૪૪
तृतीयः पादः
पूसाणो पूसा । तक्खाणो तक्खा । मुद्धाणो मुद्धा | श्वन् साणो सा ॥ सुकर्मणः पश्य सुकम्माणे पेच्छ । निएइ कह सो सुकम्भाणे । पश्यति कथं स सुकर्मणः इत्यर्थः । पुंसीति किम् । शर्म सम्मं ।
पुल्लिंग में होने वाली, अन् अन्त होने वाली संज्ञाओं के ( अन्त्य ) स्थान में आण आदेश विकल्प से आता है । ( विकल्प -- ) पक्ष में, वाङ्मय में जैसा दिखाई देगा वैसा, राजन् शब्द के समान कार्य होता है । और आण आदेश होने पर, 'अत: सेड:' इत्यादि सूत्रों से नियम लगते हैं । परन्तु ( विकल्प -- ) पक्ष में, राजन् शब्द के बारे में लगने वाले 'जस् - शस् इण मामा इन सूत्रों में से नियम लगते हैं । उदा -- अप्पाणो अध्वाण -- कथं ( विकल्प - - ) पक्ष में :-- राजन् शब्द के समान :- अप्पा अप्पेसु ( ऐसे रूप होते हैं ); रायाणो... राधासु ( विकल्प -- ) पक्ष में :--राया, इत्यादि । इसी तरह :-- जुवाणो सुकम्माणे पेच्छ; निएइ... सुकम्भाणे ( यानी ) शुभ कर्म करने वालों को कैसे देखता है, ऐसा अर्थ है । पुल्लिंग में होने वाली ( अन्नन्त संज्ञाओं के ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण अन्नन्त शब्द पुल्लिंग में न हो, तो आण आदेश नहीं होता है । ) शर्म, सम्मं ।
अप्पाणेसु;
उदा०
――
आत्मनष्टो णिआ णइआ ॥ ५७ ॥
आत्मनः परस्याष्टाया: स्थाने णिआ णइआ इत्यादेशौ वा भवतः । अप्पणिआ पा' उसे उवगयम्मि । अपणिआ य "विअड्डि 'खाबिआ । अप्पइमा । पक्षे । अप्पाणेण ।
आत्मन् शब्द के आगे होने वाले टा ( प्रत्यय ) के स्थान पर णिआ और इआ ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं । उदा०-- अप्पणिआ अप्पणइआ । ( विकल्प - ) पक्ष में :-- अप्पाणेण ।
अतः सर्वादेर्डेर्जसः ॥ ५८ ॥
सर्वादेरदन्तात् परस्य जस: डित् ए इत्यादेशो भवति । सव्वे | अन्ने । जे । ते । के । एक्के । कयरे । इयरे । एए । अत किम् । सव्वानो । रिद्धीओ । जस इति किम् । सव्वस्स ।
सर्व, इत्यादि अकारान्त सर्वनामों के आगे आनेवाले जस् ( प्रत्यय ) को डि ए ऐसा आदेश होता है । उदा० -- सव्वे ** एए । अकारान्त ( सर्वनामों के ) ३. मूर्धन् ।
१. पूषन् ।
२. तक्षन् ।
४.
६. उपगत ।
निअ । दृश् धातु का निअ आदेश है ( सूत्र ४.१८१ देखिए ) । ५. प्रावृषु । ७. चितदि । ८. खनि । ९. क्रम से :- सर्वं । अन्य | ज ( यद्) । त ( वद् ) । क ( किम् ) । एक । १०. ऋद्धि ।
कतर । इतर । एतद् ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org