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प्राकृतव्याकरणे
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इकारान्त और उकारान्त शब्दों के आगे, अर्थात् जस् और ङसि ( इन प्रत्ययों) को णो आदेश होने पर, ( उनका अन्त्य स्वर ) दीर्घ नहीं होता है। उदा०अग्गिणो, वाउणो। ( आगे ) णो आदेश होने पर ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण आगे णो आदेश न हो, तो अन्त्य स्वर दीर्घ होता है। उदा०-) अग्गी, अग्गीमो ।
ङसेलक ॥ १२६ ॥ आकारान्तादिभ्योदन्तवत् प्राप्तौ ङसेलग न भवति। मालत्तो मालाओ मालाउ मालाहितो आगओ। एवम् ! अग्गीओ वाऊओ इत्यादि ।
आकारान्त इत्यादि शब्दों के आगे, अकारान्त शब्द के समान प्राप्त हुए सि ( प्रत्यय ) का लोप नहीं होता है। उदा:--मालत्तो' ... आगओ। इसी प्रकार अग्गीओ, वाऊओ, इत्यादि ( रूप होते हैं )।
भ्यसश्च हिः ॥ १२७ ।। आकारान्तादिभ्योदन्तवत् प्राप्तो भ्यसो इसेश्च हिर्न भवति । मालाहितो मालासुतो। एवं अग्गीहिंतो इत्यादि । मालाओ मालाउ मालाहिंतो। एवं अग्गीओ इत्यादि। ___ आकारान्त इत्यादि शब्दों के आगे, अकारान्त शब्द के समान प्राप्त हुए म्यस् और ङसि ( इन प्रत्ययों) का हि नहीं होता है। उदा. ~मालाहितो, मालासंतो। इसी प्रकार अग्गीहितो, इत्यादि; मालाओ .. .."मालाहितो; इसी प्रकार अग्गीओ इत्यादि ( रूप होते हैं )।
हुः ॥ १२८ ॥ आकारान्तादिभ्योदन्तवत् प्राप्तो हुर्डे न भवति । अग्गिम्मि। वाउम्मि । दहिम्म। महुम्मि।
आकारान्त इत्यादि शब्दों के आगे, अकारान्त शब्द के समान प्राप्त होने वाले कि ( प्रत्यय ) का हे नही होता है । उदा० --- अग्गिम्मि... :: महुम्मि ।
____एत् ॥१२६ ॥ आकारान्तादीनामर्थात् टाशभिसभ्यस्सुप्सु परतोदन्तवद् एत्वं न भवति । द्वाहाण कयं । मालाओ पेच्छ । मालाहि कयं । मालाहिंतो मालासुतो आगओ। माकासु ठिअं । एवं अग्गिणो वारणो इत्यादि । ____टा, शस्, भिस्, और सुप् ये ( प्रत्यय ) अर्थात् आकारान्त इत्यादि शब्दों के मागे होने पर, अकारान्त शब्द के समान, उनके ( अन्त्य स्वर का ) ए नहीं होता
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