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प्राकृतव्याकरणे
एतः पर्यन्ते ॥ ६५ ॥
पर्यन्ते एकारात् परस्य यस्य रो भवति । पेरन्तो । एत इति किम् । पज्जन्तो ।
पर्यन्त शब्द में ( प में से अ का ए होकर, उस ) एकार के आगे होनेवाले बं का र होता है । उदा० - पेरन्तो । एकार के आगे होनेवाले ( यं का ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण एकार के आगे र्य न हो, तो उसका र् न होते, ज्ज होता है । उदा० – ) पज्जन्तो ।
आश्चर्ये ।। ६६ ।।
आश्र्चर्ये एतः परस्य यस्य रो भवति । अच्छेरं । एत इत्येव । अच्छरिअं ।
आर्य शब्द में (व में से अ का ए होकर, उस ) एकार के मागे होनेवाले यं कार होता है । उदा -अच्छोरं ए के आगे ( यं ) होने पर ही ( उसका र होता है; जैसा न होने पर र नहीं होता है । उदा० ) अच्छरिअं ।
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अतो रिआर रिजरीअं ॥
६७ ॥
अकारात् परस्य र्यस्य रिअ, अर, रिज्ज, रोम इत्येते आदेशा भवन्ति । अच्छरिअं अच्छअरं अच्छरिज्जं अच्छरीअं । अत इति किम् । अच्छेरं ।
आश्चर्य शब्द में ( एच में से ) अकार के आगे होनेवाले यं को रिभ, भर, रिब्ज और रीअ ऐसे ये आदेश होते हैं । उदा० - अच्छारिअं अच्छरीअं । अकार के आगे होनेवाले ( को ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण श्च में से अ का ए यदि न हो, तो ये आदेश न होते, सूत्र २०६६ के अनुसार ) अच्छेरं ( ऐसा वर्णान्तर होता है ) ।
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पर्यस्तपर्याणसौकुमार्ये ल्लः ॥ ६८ ॥
एषु र्यस्य ल्लो भवति । पर्यस्तं पल्लटं पल्लत्थं । पल्लाणं । सोअमल्लं । पल्लंको इति च पल्यङ्कशब्दस्य यलोपे द्वित्वे च । पलिको इत्यपि चौर्यसमत्वात् ।
पर्यस्त, पर्याण और सौकुमार्य शब्दों में र्य का ल्ल होता है । उदा० - - पर्यस्तम्.. सोअमलं । पल्लंक शब्द पल्यङ्क शब्द में से य् का लोप होकर और ल् का द्विस्व होकर सिद्ध हुआ हैं । ( पल्यङ्क शब्द का ) पलिश्रंको ऐसा भी ( वर्णान्तर होता है); कारण वह शब्द चोर्यसम शब्द है
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