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तृतीयः पादः
होने पर ) :-गिरीहिं...'कयं । भ्यस् ( आगे होने पर ):--गिरीओ''आगो, इसी प्रकार :-गिरीहितो''आगबो, इत्यादि भी होता है। सुप् (आगे होने पर):गिरीसु....."ठि। क्वचित् ( इन प्रत्ययों के पिछले इ और उ इनका दीर्घ स्वर ) नहीं होता है। उदा.-दिम...."ल्लिआई। इकार और उकार ( इनका दीर्घ स्वर होता है ) ऐसा क्यों कहा है ? कारण पीछे इ का उ न हो, तो ऐसा दीर्घ स्वर नहीं होता है। उदा०-) वच्छेहि.... 'बच्छेसु । भिस्, म्यस् और सुप ये प्रत्यय आगे होने पर ही ( पिछले इ और उ दीर्घ होते हैं, अन्य प्रत्यय आगे होने पर, वे दीर्घ नहीं होते हैं । उदा०- गिरि..... पेच्छ ।
चतुरो वा ॥ १७॥ चतुर उदन्तस्य भिसभ्यसयुप्सु परेषु दो? वा भवति। चऊहि चउहि । चऊओ चउओ। चऊसु चउसु ।
उकारान्त वतुर ( यानी चउ ) शब्द के आगे भिस, म्यस और सुप ये प्रत्यय होने पर ( पिछला उकार ) विकल्प से दीघं ( यानी ऊ ) होता है। उदा०चऊहि...' उसु ।
लुप्ते शसि ॥ १८ ॥ इदुतोः शसि लुप्ते दी| भवति । गिरी। बुद्धी। तरू । धेणू पेच्छ। लुप्त इति किम् । गिरिणो। तरुणो पेच्छ। इदुत इत्येव । वच्छे पेच्छ। जसशस् ( ३.१२ ) इत्यादिना शसि दोघंस्य लक्ष्यानुरोधार्थो योगः । लुप्त इति तु णवि प्रतिप्रसवार्थशंकानिवृत्त्यर्थम् ।
( आगे आने वाले ) शस् । प्रत्यय ) का लोप होने पर ( उसके पिछले ) इ और उ इनका दोघं ( यानी ई और ऊ ) होता है। उदा ---गिरी... . 'पेच्छ । ( शस् प्रत्यय का) लोप होने पर ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण शस् प्रत्यय का लोप न होते यदि शस् प्रत्यय का आदेश आगे हो,तो पिछले इ और उ दीर्घ नही होते हैं । उदा०गिरिणो'... "पेच्छ । ( शस् प्रत्यय का लोप होने पर, पिछले ) इ और उ इनका ही दोघं होता है ( अन्य स्वरों का नहीं । उदा०-)वच्छे पेच्छ । 'जस्शस्' इत्यादि सूत्रानुसार, शस् प्रत्यय ( आगे ) होने पर, उदाहरणों के अनुसार ( दोष हो ) यह बताने के लिए दोध होता है, ऐसा ( प्रस्तुत ) नियम है। ( शस् प्रत्यय का ) लोप होने पर ऐसा कहने का कारण तो यह है कि ‘णो' प्रत्यय के ( सूत्र ३.२२ देखिए ) बारे में प्रतिप्रसव है क्या, ऐसो शंका न हो, इसलिए ।
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