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द्वितीयः पादः
बृहस्पतिवनस्पत्योः सो वा ॥ ६६ ॥ अनयोः संयुक्तस्य सो वा भवति । बहरसई बहप्फई भयस्सई भयप्फई। वणस्सई । वणप्फई।
बृहस्पति और वनस्पति शब्दों में संयुक्त व्यञ्जन का स विकल्प से होता है । उदा०-बहस्सई. वणप्फई ।
बाष्पे होश्र णि ॥ ७० ॥ बाष्पशब्दे संयुक्तस्य हो भवति अश्रुण्यभिधेये। बाहो नेवजलभ् । अश्रुणोति किम् । बप्फो ऊष्मा।
(बाष्प शब्द से ) अध अर्थ के अभिप्रेत होने पर, बाष्प शब्द में संयुक्त व्यञ्जन का ह होता है । उदा० ... बाहो ( यानी ) नयनों का नीर, अश्रु । अथ अर्थ कहने का अभिप्राय होने पर ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण बाष्प शब्द का अर्थ अश्रु न हो, तो ष्प का ह नहीं होता है। उदा०-- ) बप्फो (यानी) ऊष्मा (= उष्णता) ।
कार्षापणे ।। ७१ ॥ कार्षापणे संयुक्तस्य हो भवति । काहावणो । कथं कहावणो। ह्रस्वः संयोगे ( १.८४ ) इति पूर्वमेव ह्रस्वत्वे पश्चादादेशे। कर्षापणशब्दस्य वा भविष्यति ।
कार्षापण शब्द में संयुक्त व्यञ्जन का ह होता है । उदा०- काहावणो । (प्रश्न:-) कहावणो ( यह वर्णान्तर ) कैसे होता है ? ( उत्तरः-- - कार्षापण शब्द में ) ह्रस्वः संयोगे' सूत्रानुसार पहले ही ( का में से आ ) ह्रस्व ! = अ ) हुआ और फिर (प्रस्तुत सूत्र के अनुसार र्ष को ह ) आदेश हुआ । अथवा ( कहावणो यह वर्णान्तर) कर्षापण शब्द का होगा।
दुःखदक्षिणतीर्थे वा ॥ ७२ ।। एषु संयुक्तस्य हो वा भवति । दुहं दुक्खं । पर' दुक्खे दुक्खिआ विरला । दाहिणो दक्खिणो । तूहं तित्थं ।
दुःख, दक्षिण और तीर्थं शब्दों में संयुक्त व्यञ्जन का ह विकल्प से होता है । उदा.---दुहं 'तित्थं । १. परदुःखे दुःखिता विरलाः ।
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