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प्राकृतम्पाकरणे
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गोआवरी इति तु गोदा-गोदावरीभ्यां सिद्धम् । भाषाशब्दाश्च । आहित्य' लल्लक्क विड्डिर पच्चड्डिअ उप्पेहड मडप्फर पड्डिच्छिर अट्टभट्ट विहडफ्फड उज्जल्ल हल्लप्फल्ल इत्यादयो महाराष्ट्रविदर्भादिदेशप्रसिद्धा लोकतोवगन्तव्याः। क्रियाशब्दाश्च । २अवयासइ फुम्फुल्लइ उप्फालेइ इत्यादयः । अतएव च कृष्ट-धष्ट-वाक्य-विद्वस-वाचस्पति-विष्टरश्रवस्-प्रचेतस-प्रोक्तप्रोतादीनां क्विबादिप्रत्ययान्तानां च अग्निचित्-सोमसुत्-सुग्ल-सुम्ले. त्यादीनां पूर्वः कविभिर प्रयुक्तानां प्रतीति वैषम्यपरः प्रयोगो न कर्तव्यः । शब्दान्तरैरेव तु तदर्थोभिधेयः । यथा। कृष्टः, कुशलः । वाचस्पतिः गुरुः । विष्टरश्रवा हरिः । इत्यादि । धष्टशब्दस्य तु सोपसर्गस्य प्रयोग इष्यते एव । मन्दरयडपरिघटळं । तद्दिअसनिहट्ठाणंग । इत्यादि । आर्षे तु तु यथादर्शनं सर्वमविरुद्धम् । यथा। "घट्ठा । मट्ठा । विउसा । सुअलक्खणाणुसारेण । वक्कन्तरेसु अपुणो, इत्यादि ।
( अब जिन शब्दों के बारे में ) प्रकृति, प्रत्यय. लोप, आगम ( किंवा अन्य ) वर्णविकार नहीं कहैं हैं, ऐसे गोण इत्यादि शब्द प्रायः निपातके स्वरूप में आते हैं । उदा०--गौः गोणो....''आसीसा । क्वचित् ( मूल संस्कृत शब्द में से ) ह के ड्ड और भ होते हैं । उद। ---बृहत्तरम्..... भिमोरो । ( कभी ) ल्ल का ड्ड होता है। उदा० ---- क्षुल्लक: खुड्डओ। घोषाणामतनो....... मायंदो। माकन्द शब्द संस्कृत में भी हैं ऐसा अन्य लोग कहते हैं। विष्णुः भट्टिओ...."साहुली, इत्यादि । ( इस सूत्र में भी सूत्र २.१६५ में से ) वा ( = विकल्प ) शब्द का अधिकार होने के कारण, विकल्प पक्ष में ( ऊपर दिए हए शब्दों के रूप वाङ्मय में ) जैसा दिखाई देगा वैसा, गउओ इत्यादि भी होते हैं । गोला और गोआवरी ये रूप मात्र गोदा और गोदावरी इन ( संस्कृत ) शब्दों से सिद्ध होते हैं । और उस देश की भाषाओं में से ( विशिष्ट ऐसे ) आहित्य ( आहित्य )....."हल्लफल्ल इत्यादि शब्द महाराष्ट्र, विदर्भ इत्यादि देशों में प्रसिद्ध हैं और वे लोगों से ही जानते हैं : ( इसीतरह ) क्रियावाचक शब्द भी ( = क्रियापद भी ) ( दिखाई देते हैं । उदा० ..... ) अवयासइ"उप्फाले इ, इत्यादि । और इसीलिए ही कृष्ट..... प्रोत, इत्यादि शब्द तथा क्विप् इत्यादि प्रत्ययों से अन्त होनेवाले अग्निचित्... · सुम्ल, इत्यादि शब्दों का जो पूर्व कविओं ने नहीं प्रयुक्त किए हैं, ( उनके बारे में ) अर्थ समझने में प्रत्यवाय हो ऐसा प्रयोग न करे, १. क्रकसे--ऋद्ध । भयंकर । क्षरित । आडम्बरयुक्त । गर्व । सदृश । अशुभ
संकल । व्याकुल । बलिष्ठ । त्वरा । २. क्रमसे-श्लिष्यति । (प्र+फुल्ल ) ? : ( उद्+स्फाय ) ?। ३. क्रमसे-मन्दरतटपरिधृष्टम् । तद्दिवनिधृष्टानङ्ग। ४. क्रमसे - धृष्ट । मृष्ट । विद्वस् । श्रुतलक्षणानुसारेण । वाक्यान्तरेषु च पुनः ।
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