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प्राकृतव्याकरणे
उस्ल:--विआरुल्लो 'दप्पुल्लो । आल:-सद्दालो.... 'जोण्हालो । वंतः-धणवतो, भत्तिवंतो । मंतः-हणुमंतो""पुण्णमंतो। इत:- कव्वइत्तो,माणइत्तो। इर--गम्विरो, रेहिरो । मणः-धणमणो । ( मत् प्रत्यय को ) मा ऐसा भी आदेश होता है ऐसा कुछ ( वैयाकरण ) कहते हैं । उदा०-हणमा । मत् ( प्रत्यय ) के ( स्थान पर ये आदेश होते हैं ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण अन्यमत्वर्थी प्रत्ययों को ऐसे आदेश नहीं होते हैं । उदा०-) धणी, अत्थिओ।
तो दो तसो वा ।। १६० ॥ तसः प्रत्ययस्य स्थाने तो दो इत्यादेशौ वा भवतः । सव्वत्तो सव्वदो। एकत्तो एकदो। अन्नत्तो अन्नदो । कत्तो कदो । जत्तो जदो । तत्तो तदो। इत्तो इदो । पक्षे । सव्वओ । इत्यादि ।
तस् प्रत्यय के स्थान पर तो और दो ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं । उदा०सव्वत्तो 'इदो । ( बिकल्प-.) पक्षमें---सव्वमओ. इत्यादि ।
त्रपो हिहत्थाः ।। १६१ ।। अप प्रत्ययस्य एते भवन्ति । यत्र जहि जह जत्थ । तत्र तहि तह तत्थ । कुत्र कहि कह कत्थ । अन्यत्र अन्नहि अन्नह अन्नत्थ । अप् प्रत्यय को हि, ह और त्य ये मादेश होते हैं । उदा.-यत्र 'अन्नत्य ।
वैकादः सि सि इआ ॥ १६२ ।। एकशब्दात् परस्य दा-प्रत्ययस्य सि सि इआ इत्यादेशा वा भवन्ति । एकदा एक्कसि एक्कसि एक्कइआ । पक्षे । एगया।
एक शब्द के आगे आनेवाले दा प्रत्यय को सि, सिमं और इआ ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं । उदा०-एकदा 'एक्कइआ। (विकल्प-) पक्षमें-एगया।
डिल्लडल्लो भवे ॥ १६३ ।। भवेर्थे नाम्नः परौ इल्ल उल्ल इत्येतौ डितौ प्रत्ययौ भवतः। 'गामिल्लिआ। पुरिल्लं । हेटिठल्लं । उवरिल्लं । अप्पुल्लं आल्वालावपीच्छन्त्यन्ये ।।
( अमुक स्थान पर ) हुआ (= उत्पन्न) इस अर्थ में. संज्ञा के आगे इल्ल ओर उल्ल ऐसे ये दो डित् प्रत्यय आते हैं। उदा.--गामिल्लिआ अप्पुल्लं। इस 'भव' के अर्थ में, अलु और आल ऐसे प्रत्यय भी आते हैं, ऐसा कुछ वैयाकरणों का मत है। १. क्रमसे-सवंतः । एकतः । भन्यतः । कुतः । यतः । ततः । इतः । २. सर्वतः । ३. एकदा। ४. क्रमसे-/ग्राम । पुरः ( सूत्र २.१६४ देखिए )। /हेटह (सूत्र २.१४१ देखिए) । Vउपरि । मप्प (सूत्र २.५१ देखिए)।
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