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द्वितीयः पादः
पर्यस्त शब्द में, स्त के पर्याय से थ और ट होते हैं। उदा०-पल्लत्थो, पल्लट्टो।
वोत्साहे थो हश्च रः ।। ४८ ।। उत्साहशब्दे संयुक्तस्य थो वा भवति तत्सं नियोगे च हरय रः। उत्थारो उच्छाहो।
उत्साह शब्द में संयुक्त व्यञ्जन का थ विकल्प से होता है और उसके सानिध्य में ह का र होता है । उदा० . .---उत्थारो; उच्छाहो ।
आश्लिष्टे लधौ ॥ ४६॥ आश्लिष्टे संयुक्तयोर्यथासंख्यं ल ध इत्येतौ भवतः । आलिखो।
आश्लिष्ट शब्द में संयुक्त व्यञ्जनों के क्रम से ल और ध ऐसे ये (धिकार) होते हैं । उदा०-आलिद्धो।
चिह्न न्धो वा ॥ ५० ॥ चिह्न संयुक्तस्य धो वा भवति । गहापवादः । पक्षे सोऽपि । चिन्धं इन्धं चिण्हं।
चिह्न शब्द में संयुक्त व्यञ्जान का न्य विकल्प से होता है । (ह्न का) ण्ह होता है। ( सूत्र २७५ ) नियम का अपवाद प्रस्तुत नियम है । ( विकल्प ----- ) पक्ष में वह भो नियम लगता है। उदा--- चिन्धं चिण्हं ।
भस्मात्मनो; पो वा ।। ५१ ॥ अनयोः गयुक्तस्य पो वा भवति । भप्पो भरसो। अप्पा अपाणो। पक्षे अत्ता ।
भस्मन् और आत्मन् इन दो शब्दों में संयुक्त व्यञ्जन का विकल्प से प होता है । उदा० ---भप्पो 'अप्पागो। ( विकल्प ----- ) पक्ष में अत्ता ( एस? आत्मन् शब्द का वर्णान्तर होता है ।
डमक्मोः ।। ५२ ।। ड्मक्मोः पो भवति । कुडमलम कुम्पलं । रुक्मिणी रुप्पिणी। क्वचित् च्मोऽपि । रुच्मी रुप्पी।
ड्म और कम का प होता है । उदा०----कुड्मलं. 'रुप्पिणी। क्वचित् ( कम का च्म भी ( होता है । उदा० - - ) रुच्मी, रुप्पी ।
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