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प्रथमः पादः
हरिद्रा इत्यादि पाब्दों में असंयुक्त होने बाले र का ल होता है। उदा०हलिही...."निठुलो । बहुल का अधिकार होने से, चरण शब्द पाव अर्थ में होने पर ही ( उसमें से र का ल होता है। चरण का अर्थ पाव न होने पर ) अन्य स्थान में (र का ल नहीं होता है। उदा०-) चरणकरणं । भ्रमर शब्द में 'स' के सांनिध्य होने पर ही ( र का ल होता है ) स के सांनिध्य न होने पर ) अन्यत्र (र का ल नहीं होता है। उदा० ) भमरो। अपि च ( कुछ शब्दों में र का ल न होते ) जढरं.. निठुरो, इत्यादि भी ( वर्णान्तर ) होते हैं। उपर्युक्त शब्दों के मूल संस्कृत शब्द क्रमसे ऐसे हैं-) हरिद्रा' 'निष्ठुर, इत्यादि : आर्ष प्राकृत में दुवालसंगे इत्यादि वर्णान्तर भी होता है।
स्थूले लो रः ।। २५५ ॥ स्थूले लस्य रो भवति । थोरं । कथं थूल भद्दो। स्थूरस्य हरिद्रादिलत्वे भविष्यति।
स्थूल शब्द में ल का र होता है। उदा०-थोरं । (प्रश्न:-) थूलभद्दो ( यह वर्णान्तर ) कैसे होता है ? ( उत्तरः--स्थूरभद्र शब्द में से ) स्थूर शब्द में, हरिद्रा इत्यादि शब्दों के समान (र का) ल होकर । सूत्र १. ५४ ) थूलभद्द वर्णान्तर होगा ।
लाहललाङ्गललाङगले वादेर्णः ।। २५६ ।। एषु आदेर्लस्य णो वा भवति । णाहलो लाहलो। णंगलं लंगलं। णंगूलं लंगूलं।
लाहल, लांगल, और लांगूल शब्दों में, आदि ल का ण विकल्प से होता है । उदा० ...गाहलो लंगूलं ।।
ललाटे च ।। २५७ ।। ललाटे च आदेर्लस्य णो भवति : चकार आदेरनुवृत्त्यर्थः । णिडालं णडालं।
__ और ललाट शब्द में आदि ल का ण होता है । ( सूत्र १.२५६ में से आदेः (=पहले के) पद की अनुवृत्ति ( प्रस्तुत ९.२५७ सूत्र में ) होती है, यह दिखाने के लिए ( प्रस्तुत सूत्र में ) चकार (=च शब्द) प्रयुक्त है । उदा० ..-णिडालं, णडालं ।
शबरे बो मः ।। २५८ ।। शबरे बस्य मो भवति । समरो। शबर शब्द में ब का म होता है। उदा , ----समरो ।
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