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प्रथमः पादः
से ) विश्लेष हुआ हो, तो (ऐ का अइ ) नहीं होता है। उदा-चैत्यम् चेइमं । आर्ष प्राकृत में-चत्यवन्दनम् ( शब्द का ) ची-वंदणं ( ऐसा वर्णान्तर होता है )।
वैरादौ वा ॥ १५२ ॥ वैरादिषु ऐतः अइरादेशो वा भवति । वइरं वेरं। कइलासो केलासो। कहरवं केरवं। वइसवणो वेसवणो। वइसंपायणो वेसंपायणो । वइआलिओ वेआलिओ। वइसिअं वेसिअं। चइत्तो चेत्तो। वैर। कैलास । कैरव । वैश्रवण । वैशम्पायन । वैतालिक । वैशिक । चैत्र । इत्यादि ।
वैर इत्यादि शब्दों में ऐ को अइ आदेश विकल्प से होता है। उदा०-वदर... चेत्तो। ( मूल संस्कृत शब्द क्रम से ऐसे:-) वैर...चैत्र,इत्यादि ।
एच्च दैवे ॥ १५३ ॥ दैवशब्दे ऐत एत् अइश्चादेशो भवति । देव्वं दइव्वं दइवं । दैव शब्द में ऐ का ए और अइ आदेश होते हैं। उदा०-देख्नं...दइन ।
उच्चैर्नीचैस्त्र अः ॥ १५४ ॥ अनयोरैतः अअ इत्यादेशो भवति । उच्चअं । नीचअं। उच्चनीचाभ्यां के सिद्धम् । उच्चैर्नीचैसोस्तु रूपान्तरनिवृत्त्यथं वचनम् ।
उच्चः और नीचः इन दो शब्दों में ऐ को अअ आदेश होता है। उदा०-उच्चअं, नीचरं । ( तो ) उच्च और नीच इन शब्दों से कौन से वर्णान्तर होते हैं ? उच्चः
और नीचैः शब्दों के अन्य वर्णान्तर नहीं होते हैं, यह बताने के लिए ( यहाँ का ) विधान है।
ईथैर्ये ॥ १५५ ॥ धैर्यशब्द ऐत ईद् भवति । धीरं 'हरइ विसाओ। धर्य शब्द में ऐ का ई होता है । उदा.---धीर.. विसाओ। ओतोद्वान्योन्यप्रकोष्ठातोद्यशिरोवेदनामनोहरसरोरुहे क्तोश्च ॥१५६।।
एषु ओतोत्त्वं वा भवति तत्संनियोगे च यथासंभवं ककारतकारयोवर्वादेशः । अन्नन्न अन्नन्न । पवटठो पउठो। आवज्ज आउज्ज। सिरविअणा सिरोविअणा । मणहरं मणोहरं । सररुहं सरोरुहं।।
अन्योन्य. प्रकोण्ठ, आतोद्य, शिरोवेदना, मनोहर, और सरोरुह इन शब्दों में, ओ का अ विकल्प से होता है, और उसके सानिध्य में, संभवनीय जहाँ तो वहाँ, ककार और नकार को न ( ऐसा ) आदेश होता है। उदा०--अन्नन्नं "सरोरुहं । १.धैर्य हरति विषादः ।
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