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प्राकृतव्याकरणे
एआरह....'गग्गरं। अनादि होने पर ही ( द का र होता है; द आदि हो, तो ऐसा र नहीं होता है । उदा:-) ते दस । असंयुक्त होने पर ही ( दकार होता है; द संयुक्त हो, तो ऐसा र नहीं होता है । उदा०-) चउद्दह ।
___ कदल्यामद्रुमे ॥ २२० ॥ कदलोशब्दे अद्रुमवाचिनि दस्य रो भवति । करली। अद्रुम इति किम् । कयली केली।
कदली शब्द में, उसका पेड अर्थ न होने पर, द का र होता है। उदा.-कदली । (कदली शब्द का अर्थ) पेड न होने पर ऐसा क्यों कहा है ? (कारण पेड अर्थ होने पर द का र नहीं होता है । उदा-) कयली, केली ।
प्रदीपिदोहद लः ॥ २२१ ॥ प्रपूर्वे दीप्यतौ धातौ दोहदशब्दे च छस्य लो भवति ।' पलीवेइ । पलित्तं । दोहलो।
प्र ( उपसर्ग ) पीछे होने वाले दीप् धातु में और दोहद शब्द में, द का ल होता है। उदा०-पलोवेइ.'दोहलो ।
कदम्बे वा ॥ २२२ ॥ कदम्बशब्दे दस्य लो वा भवति । कलंबो कयंबो । कदम्ब शब्द में द का ल विकल्प होता है । उदा.-कलंबो, कयबो ।
___ दीपौ धो वा ॥ २२३ ॥ दीप्यतौ दस्य धो वा भवति । धिप्पइ दिप्पइ। दीप्यति ( धातु ) में द का ध विकल्प से होता है । उदा.-धिप्पइ, दिप्पइ ।
कदर्थिते वः ॥ २२४ ॥ कथिते दस्य वो भवति । कवट्टिओ। कथित शब्द में द का व होला है । उदा०-कवट्टिओ ।
ककुदे हः ॥ २२५ ॥ ककुदे दस्य हो भवति । कउहं । ककुद शब्द में द का ह होता है । उदा०-कउहं । १. क्रमसे--प्रदीपयति । प्रदीप्त । दोहद ।
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