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प्रथमः पादः
माउओ। माउआ। भाउओ। पिउओ। पुहुवी। ऋतु । परामृष्ट । स्पृष्ट । प्रवृष्ट । पृथिवी । प्रवृत्ति । प्रावृष् । प्रावृत । भृति । प्रभृति । प्राभृत । परभृत । निभृत । निवृत । विवृत । संवृत । वृत्तान्त । निवृत । निवृति । वृद। वृदावन । वृद्ध । वृद्धि । ऋषभ । मृणाल । ऋजु । जामातृक । मातृक । मातृका। भ्रातृक । पितृक । पृथ्वी । इत्यादि ।
ऋतु इत्यादि शब्दों में आदि ऋ का उ होता है। उदा-उउ'''पुहुवी। ( मूल संस्कृत शब्द क्रम से ऐसे हैं---) तु 'पृथ्वी । इत्यादि ।
निवृत्तवृन्दारके वा ॥ १३२ ॥ अनयोत उद् वा भवति । निवृत्तं निअत्तं । वृंदारया वंदारया।।
निवृत्त और बुन्दारक इन दो शब्दों में ऋ का उ विकल्प से होता है। उदा०निवृत्तं 'बंदारया।
वृषमे वा वा ॥ १३३ ॥ वृषभे ऋतो वेन सह उद् वा भवति । उसहो वसहो । वृषभ शब्द में व् के साथ ऋ का उ विकल्प से होता है । उदा०-उसहो, वसहो।
गौणान्त्यस्य ।। १३४॥ गौणशब्दस्य योन्त्य ऋत् तस्य उद् भवति । 'मास-मंडलं । माउ-हरं । पिउ-हरं । माउसिआ। पिउसिआ। पिउ-वणं । पिउ-वई ।
( समास में गौण शब्द का जो अन्त्य ऋ, उसका उ होता है। उदा.माउ.."पिउबई।
मातुरिद्वा ॥ १३५ ॥ मातृशब्दस्य गौणस्य ऋत इद् वा भवति । माइ-हरं माउ-हरं । क्वचिदगौणस्यापि । माईणं।
(समास में ) गौण होने वाले मातृ शब्दके ऋ का इ विकल्प से होता है । उदा -माई. 'हरं । क्वचित् ( मातृशब्द समास में ) गौण न होने पर भी ( उसमें से ऋ का इ होता है । उदा- ) माईणं । १. क्रम से-- मातृमण्डल । मातृगृह । पितृगृह । मातृष्वसा । पितृष्वसा । पितृवन पितृपति ।
२. मातृगृह । १. माई.....'मातृ । माइ शब्द का षष्ठी एकवचन ।
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