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प्रथमः पादः
उज्जीर्णे ॥ १.२॥ जीर्णशब्दे ईत् उद् भवति । जुण्णसुरा' । क्वचिन्न भवति । जिणे२ भोअणमत्ते।
जीर्ण शब्द में ई का उ होता है। उदा०---जुण्णसुरा। क्वचित् ( जीर्ण में से ई का उ ) नही होता । उदा-मिण्णे .. .. मत्ते ।
ऊ_नविहीने वा ॥ १०३ ।। अनयोरति ऊत्वं वा भवति । हूणो हीणो। विहूणो विहीणो । विहीन इति किम् । पहीण-जर-मरणा।।
होन और विहीन इन दो शब्दों में ई का ऊ विकल्प से होता है। उदा.-- हूणो"..."विहीणो। विहीन शब्द में (ई का ऊ विकल्प से होता है ) ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण होम शब्द के पौछ 'वि' छोड़कर अन्य उपसर्ग होने पर, ई का ऊ नहीं होता है। उदा.--) पहीण... .."मरणा।
तीर्थे हे ॥१०४॥ तीर्थशब्द हे सति ईत ऊत्वं भवति । तहं । ह इति किम् । तित्थं ।
तीर्थ शब्द में ( वर्ण विकार होकर ती के आगे ) ह व्यञ्जन होने पर, ई का ऊ होता है। उदा०-तूहं । ( आगे ) ह. ( व्यञ्जन ) आने पर, ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण यदि आगे ह. न हो, तो ई का ऊ नहीं होता है। उदा.-) तित्थं ।
एत्पीयूषापीडबिभीतक कीदृशेदृशे ॥ १०५ ॥ एषु ईत एत्वं भवति । पेऊसं । आमेलो । बहेडओ। केरिसो। एरिसो।
पीयूष, आपीड, बिभीतक, कोहश और ईदृश शब्दों में, ई का ए होता है । उदा... 'पेथसं... . 'एरिसो ।
नीडपीठे वा ॥ १०६॥ अनयोरीत एत्वं वा भवति । नेड नोडं । पेढं पीढं ।
नीड और पीठ इन दो शब्दों में, ई का ए विकल्प से होता है। उदा०-नेड .... .. 'पीढं। १. जीणंसुरा।
२. जीणे भोजनमा। ३. प्रहीषनरामरणाः ।
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