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२४६
७ स्वभाववादी २३२ | १६ गृहस्थधर्म का फल
२७६ ८नियतिवादी
२३३ / १७ विषयभोग की कामना का त्याग २८२ ६ कर्मवादी
२३४ | १८ दाता और दानगृहिता - २३. १० उद्यमवादी
२३४ | १६ साधु और गृहस्थ की तुलना ॥ २८४ . १९ क्रियावादी २३५ २० दुश्शील त्यागी
२८६ १२ प्रक्रियावादी २३५ २१ रात्रि भोजन त्याग
२८७ १३ अचानवादी २३६ / २२ लच्चा ब्राह्मण
२८६ १४ विनयवाद
२३६ / २३ बाह्याचार की निरर्थकता २६३ ।। १५ सम्यक्त्व के दस भेद २२८/२४ श्रान्तरिक श्राचार की सार्थकता २६५ . १६ सम्यक्त्व के अनेक प्रकार से भेद २३६ | २५ कर्म से वर्ण व्यवस्था १७ सम्यक्त्व के अतिचार २४० १८ ।, भूषण
श्राठवां अध्याय ब्रह्मचर्य निरूपण १६ , की भावनाएँ २४१ १ ब्रह्मचर्य की रक्षा के उपाय २६८ २० सम्यक्त्व की महिमा २४३ २ स्त्री शरीर और ब्रह्मचर्य । २१ रत्नत्रय का पूर्वापर भाव २४४ ३ ब्रह्मचारी का निवास स्थान ३०१ २२ सम्यक्त्व के आठ अंग
४ स्त्री-संसर्ग का त्याग । ३०२ . २३ वोधि की सुलभता
२४८ ५ स्त्री के अंगोपांग देखने का त्याग ३.२ . २४ परीत संसारी
२४६ ६ स्त्री श्रासक्ति का त्याग २५ सम्यग्हष्टि और पाप
७ मुढ़ पुरुष की दुर्गति । ३०५ ८ काम भोग विष है
३०५ सातवां अध्याय-धर्मनिरूपण ।।
६ काम भोगों की अस्थिरता ३०७ १ सफल चारित्र-विकल चारित्र २५३ / १० काम भोग किंपाक फल हैं २ लकल चारित्र
२५४ | ११ भोग यंध के कारण है ३०६ ३ विकल चारित्र
२५४ / १२ काम का प्रचल अाकर्षण. ३१० ४ अहिंसाणुवत
१३ ब्रह्मचारी की महिमा . ३१३ ५ सत्यागवत
२५८ १४ ब्रह्मचर्य से लाभ . ६ अस्तेय व्रत २६० १५ वीर्य का महत्व
३१६ ७ ब्रह्मचयार्याणवत
| १६ ब्रह्मचर्य संबंधी भ्रम-निराकरण ३१७ ८ परित्रहपरिमाणवत
१७ ब्रह्मचर्य साधना के उपाय ३१८ ६ तीन गुणवत
१८ ब्रह्मचारी का तेज १० गुणवतों के प्रतिचार २६७
अध्याय नववा-साधुधर्म ११ चार शिक्षाबत
२६८ १२ धावक धर्म का अधिकारी २७३ | १ महावतों की मुख्यता રૂપર १३ फर्मादान २७४ | २ अहिंसा
३२३ १४ श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ २७६ / ३ जीव और प्राणी का भेद ३२४ १५ क्षमायाचना
२७७ ।। ४ मृपावाद की निन्दा
३०३
२६२
२६४
३२०
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