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कश्चिमम् आर्द्राश्लेषामूलपोष्ण-धारुगोत्तरभाद्रपात। मासं यावत् पश्चिमायां शुभाय कथितं बुधैः ॥५६॥ चक्रे श्रीसर्वतोभद्रे शुभवेधे शुभं मतम् । ऋरवेधे भवेत् पीडा तत्सदेशेषु निश्चयात् ॥५७॥ __ अथ कर्पूरचक्रेण देशान्तरेषु वर्षे शुभाशुभज्ञानं यथा तत्र प्रथम चक्रन्यासप्रकार:---- गाथा-पणमिय पयारविंदं, तिलुकनाहस्स जगपरिवुहस्स । वुच्छामि लोगविजयं, जैतं जंतूण सिद्धिकए ॥५८॥ सिरिरिसहेसरसामिय, पारणप्पगारब्भ (?) गणिय धुवं । दस उयरेहिं ठवियं, जं तं देवाण सारमिणं ॥५९॥ नवकोएण सुद्ध, इगसय पणयाल १४५ अंक गणियपयं । इकिक होई वुड्ढी, तिपन्नसय वियाणाहि ॥६॥ अश्विनी हस्त चित्रा और उत्तराफाल्गुनी ये दो मास दुःख कारक हैं । पश्चिमदिशा में मार्दा, प्राश्लेषा, मूल, रेवती, शतभिषा और उत्तराभाद्रपदा ये एक मास शुभकारक हैं ! इस सर्वतोभद्रचक्र में जिस देश में शुभग्रह का वेध हो तो शुभ और क्रूरग्रह का वेव होतो दुःख निश्चय कर के होता है ||५३ से ५७॥
त्रिलोक के नाथ और जगत् के स्वामी के चरणकमल को नमस्कार करके प्राणीमात्र की सिद्धि के लिये लोकविजय को कहता हूं ॥ ५८ ॥ श्री ऋषभदेवस्वामी का पारणा के दिन याने अक्षय तृतीया को बादल का निश्चय करें । [जो देवों के साररूप दश अंक हैं वे बिच में रखें] ॥५६॥ नवकोण वाला चक बनाकर बीच में १४५ .अंक लिखें, पीछे उसमें एक एक अंक १५३ तक बढाकर उत्तर ईशान पूर्व इत्यादि क्रम से पाठों ही दिशा में लिखें ॥६॥ देश के ध्रुवांक, दिशा के ध्रुवांक और अश्वियादि से जिस नक्षत्र पर शनि हो उतना अंक, ये तीनों मिला
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