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पमिनीय कर्मचकं पा
(११) किंवा नवसु यामेषु वाताभादिशुभं भवेत् । यस्यां दिशि च सम्पूर्ण तदेशे विपुलं जलम् ॥४४॥
लौकिकमपिआर्दा थका नक्षत्र नय, जो वरसे मेह अनंत । भडली सुणे भरडो भणे, रहिजे होइसिचिंत ॥ ४५ ॥ जिण दिसि आभो अधिक हुई, सा दिस साची जाण । सा धण घान्न रसाउली, भडली भली वखाण ॥ ४६॥
अथ पद्मिनीचकं कूर्मचक्र वा-~-- अथ तस्मात् प्रवश्यामि ग्रहयोः करसोग्ययोः । वेवज्ञानाय देशानां चक्रं पद्माह्वयं यथा ॥४७॥ अष्टपत्र लिखेचक पद्माकारं मनोहरम् । कर्णिका नवमीमध्ये तत्र देशांश्च विन्यस्येत् ॥४८॥ कृत्तिकादीनि मानीह त्रीणि त्रीणि यथाक्रमम् । संस्थाप्य वीक्ष्यते चक्र तस्कूर्मापरनामकम् ॥ ४९ ॥ यत्र भृक्षे स्थितः सौरि-स्तदिशो देशमण्डले । दुर्भिक्षं यदि वा युद्धं व्याधिदुःखं प्रजायते ।। ५० ॥ जिस दिशा में और जिस प्रहर में हो, उस दिशा और उसी ही नक्षत्र में वर्षा होती है ॥४३॥ यदि नव प्रहर में वायु-बद्दल आदि होतो अच्छा है जिस दिशा में संपूर्ण हो उस देश में बहुत वर्षा होती है ॥४४॥ लोक भाषा में विशेष कहा है कि अर्दा से नव नक्षत्रों में वर्षा होतो निश्चित रहना ऐसा ब्राह्मण कहता है और भडली सुनती है ॥४५॥ जिस दिशा में बादल अधिक हो वह दिशा सही जानना, वह धन धान्य से पूर्ण करें।४६।
देशों में शुभाशुभ ग्रहों का वेध जानने के लिये पद्म नामके चक्र को मैं कहता हूं, जैसे-मनोहर आठ पांखडी वाला कमल का आकार सदृश चक्र बनाकर इस देशों के नान और कृत्तिकादि तीन२ नक्षत्र अनुक्रम
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