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हिग्गन्सन कृतः साइकोलोजी, मार्गेट डूमण्ड कृत ऐलिमेंट्स आफ साइकोलोजी एवं गिलबर्ट रिले का दि कन्सेप्ट आफ माइन्ड) |
इस वैज्ञानिक संदर्भ में हम कर्म-विज्ञान के अन्तर्गत संस्कार और स्मृति पर भी विचार करें तो यह स्पष्ट होगा कि आज जिस सत्य पर विज्ञान पहुंचा है, उसे कर्म-विज्ञान के विवेचन में हमने संस्कार और स्मृति द्वारा यही तथ्य उद्घाटित किया और संस्कार से ही जातिस्मरता पर भी विचार किया था । "संस्कार" अनुभव है। मेदिनी कोश में उसे “मानस कर्म" कहा है। न्याय में वह एक सूत्र विशेष है, जो त्रिविध होता है - वेगाख्य, स्थिति-स्थापक और भावना । भाषा-परिच्छेद में संस्कार को "अतीन्द्रिय जीव वृत्ति (जीन के समानान्तर ) कहा है “संस्कार तत्त्वम्" में वह अदृष्ट विशेष जनक कर्म है । चित्त पर संस्कार के दो रूप होते हैं, कर्म और स्मृति । चित्त पर हमारे भावों और कार्यों का निरन्तर रेखांकन होता है-ये ही मृत्यु के पश्चात् स्मृति - संस्कार बन जाते हैं। (युंग एक प्रकार से इन्हें प्रकारान्तर में सामूहिक अचेतन कहता है - जो सामाजिक होते हुए भी ( आद्यबिंब ) व्यष्टि में भी विद्यमान रहते हैं ।) यह . संस्कार वृत्ति ही आधुनिक "जीन" है । चित्त का कोई ज्ञान या चेष्टा होने से उसे “संस्कार” कहते हैं। ज्ञान संस्कार के अनुभव का नाम "स्मृति" है, जिसका एक धरातल अचेतन है। क्रिया संस्कार का नाम स्वतः सम्भूत चेष्टा है। प्रत्येक ज्ञान और क्रियमाण कर्म संस्कारोत्पन्न होते हैं। पातंजल योग सूत्रम् में इन संस्कारों की विशद व्याख्या की गई है। इसके अनुसार ये संस्कार विद्या अथवा अविद्यामूलक होते हैं। संस्कार का रूप “वासना” है, जिसमें केवल “स्मृति" होती है। पतंजलि इसे ही आयु, जाति और भोग की स्मृति कहते हैं। वाचस्पति मिश्र के अनुसार, “प्रत्यक्ष बुद्धि निरोधेत तदनुसंधान विषयः स्मृतिः " है। अतीतानुभव का अनुसंधान ही संस्कार है। संस्कार - साक्षात्कार का अर्थ है स्मृति या पूर्वज्ञान । जेगीषण्य को संस्कार - साक्षात्कार से पूर्वजन्म के कर्म - परिणाम ज्ञात हुए थे। सामान्य मनुष्य को पूर्व जन्म की स्मृति न रहने के कारणों का भी विवेचन है। फलित ज्योतिष में पूर्वजन्म के किस पाप का फल भोगना पड़ता है, इसका भी उल्लेख है। आचार्य मंगेश्वर का कथन है
धर्मेश्चरेणैव हि पूर्वजन्म वृतं भविष्यज्जनं सुखेशात । सदीश जाति त्वधिष्ठित क्षे दिश हितत्रैव तदीश देशम् ॥
स्वामी प्रेमानन्द के अनुसार साधना के छन्द- कम्पन मनुष्य के चित्त में ही नहीं प्रत्युत वृक्षों और शिलाओं पर भी अंकित हो जाते हैं। कहा गया है “ मनोहि जन्मान्तर संगतिम् " मन जन्मान्तर की संगति करने में समर्थ है। (संस्कार व पुनर्जन्म के लिए दृष्टव्य लेखक का निबंध " जातस्य हि ध्रुवोमृत्युः ध्रुव जन्म मृतस्य च" (डॉ. हरवंश लाल शर्मा स्मृति ग्रन्थ)।
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