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लिये एक पंक्ति ध्यानमें रखनी आवश्यक हैं ‘य मा ता रा ज भा न स ल गा।'
तीन वर्णोका समुह गण कहलाता है। उक्त पंक्तिके आट गण होते है जिनका नामकरण गणकं प्रथम अक्षर से समझना चाहिये। आट गण -
(१) य गण - ‘यमाता' - पहला वर्ण लघु, दुसरा और तिसरा गुरु होता हैं। (२) म गण - ‘मातारा' - तीनो वर्ण गुरु होते हैं। (३) त गण - 'ताराज' - इसमे दो वर्ण गुरु एक लघु होता हैं। (४) र गण - ‘राजभा' - इसमे गुरु, लघु, गुरु इस तरह तरहसे वर्ण होते हैं। (५) ज गण - 'जभान' - इस गणमें लघु गुरु लघु इस प्रकार वर्ण हात हैं। (६) भ गण – “भानस' - गुरु लघु लघु इस प्रकार वर्ण होते हैं। (७) न गण - ‘नसल' - तीनो वर्ण लघु होते हैं। (८) स गण - ‘सलगा' - लघु लघु गुरु वर्णोका संयोग हैं। (२) सिर्फ मात्राओ के आधार पर बननेवाले छंदो को मात्रिक छंद कहते है।
कवि श्रेप्ट हरजसरायजीने इस ग्रंथमें वार्णिक और मात्रिक दोनाही प्रकारके छंदोका प्रयोग किया है। देवरचनामें प्रयुक्त छंदः
देवरचना अध्यात्मरससे ओतप्रोत काव्यरचना हैं जिसमें कविने कुल २५ छंदोका (वार्णिक और मात्रिक) विस्मयकारी प्रयोग किया है यथा १) दोहरा, (२) मत्तगयंद, (३) शंकर, (४) सर्वय्या, (५) चौपाई, (६) मालती, (७) मालिनी, (८) सारंगी, (९) साटक, (१०) आडिल्ल, (११) मरहटा, (१२) कडका, (१३) कवित्त, (१४) कामणी माहना, (१५) सोरटा, (१६) वसंत तिलका, (१७) गीया, (१८) छप्पय, (१९) इंद्रवजा, (२०) दुमल, (२१) द्रुतविलंव, (२२) भुयंगप्रयात, (२३) रसावल, (२४) नाराच, (२५) कामधेनु कवित्त। प्रसंगवश कुछेक छंदोपर ही यहां प्रकाश डाल रहे है।
___ दोहराः हिंदी में इसे दोहा भी कहा जाता है। जिसके चार चरण होते हैं। पहले और तीसरे चरणमें १३ मात्राये दूसरे और चौथे चरणमें ११ मात्राये हाती है। बहुप्रचलित इस छंदमें कविने कई प्रयोग किये है। एक दोहेमें बारह स्वरोंका अनुक्रम से कथन किया है तो एक स्थानपर " वर्णकी वारहखडी को पाँच प्रश्न व एक उत्तरके साथ जोड दिया है। एक दोहरे में मात्र ‘स' वर्णकी प्रस्तुति से शिप्यकी विशेपताओं का निरुपण किया है। एक नौकाके आकारमें लिखा जा सकं असा भी दोहरा हैं जिसका नाम हैं - नाविका वंध दोहरा। एक दोहरे में केवल लघुवर्णा का तो एक में केवल गुरुवर्णो का प्रयोग किया है। एक दोहरा यमक अलंकार में लिखा हैं तो एक चक्रबंध दोहरा भी है जिसमें एक भी संयुक्ताक्षर नहीं है।
मत्तगयंदः यह वाणिक छंद है जिसके दो चरण होते है। कविने जिव्हा दांत और होटोंका स्पर्श न करे, सिर्फ उन्ही वर्णोका प्रयोग करके कोई मत्तगयंद छंद
कविवर्य श्री हरजसरायजीकृत 'देवरचना' + २१