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षटखण्डागमत विधि, जाप्य मंत्र, षटखण्डागम पूजा, स्तुति, आरती आदि का समावेश करके जनसामान्य के लिये इसकी उपयोगिता बढा दी हैं।
वस्तुतः यह जैनदर्शन एवं सिद्धांत का Encyclopedia है। जैनदर्शन के अभ्यासियों के लिये प.पू. माताजी की यह अपूर्व देन है। इस ग्रंथ की उपयोगिता को दृष्टि में रखते हुए अपने सभी मतभेदों को भुलाकर कहान पंथ के मुमुक्षुओं द्वारा इन १६ पुस्तको के कई सेट खरीदकर नियमित शास्त्र-स्वाध्याय किया जा रहा है।
कातंत्ररुपमाला : श्री शर्ववर्म आचार्य प्रणीत यह कातंत्ररुपमाला नाम की व्याकरण दि. जैन परम्परा में संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिये सबसे सरल व्याकरण है। इसके कुल १३८३ सूत्र एवं आ. भावसेन त्रैविद्य लिखित टीका का हिंदी अनुवाद प. पू. माताजी ने वी. सं. २४९९ (सन् १९७३) में करके व्याकरण के अभ्यासियों पर महान उपकार किया है। इसका तृतीय संस्करण ४०+३६८ पृष्ठ संख्या के साथ प्रकाशित हो चुका है। वर्तमान में कई श्रमणसंघी में इसका अध्ययन-अध्यापन चल रहा है।
समयसार प्राभृतः आ. कुंदकुंद देव कृत समयसार प्राभृत पर आ. अमृतचन्द्र की 'आत्मख्याति' संस्कृत टीका एवं आ. जयसेन कृत 'तात्पर्यवृत्ति' संस्कृत टीका, दोनों का समन्वय करके प. पू. माताजीने 'ज्ञानज्योति हिंदी टीका वी. सं. २५१५ (सन् १९८९) में पूर्ण की। दो भागों में प्रकाशित 'समयसार पूर्वार्ध' का द्वितीय संस्करण सन् २००८ में पृष्ठसंख्या ७० + ६८० एवं 'समयसार उत्तरार्ध' का प्रथम संस्करण वी. सं. २५२१ (सन् १९९५) में पृष्टसंख्या ४८ + ६५६ के साथ उपलब्ध है। ये दोनो ग्रंथ स्वाध्यायियों के लिये अतीव उपयोगी हैं क्योंकि ये समयसार के हार्द को प्रस्फुटित करने में पूर्णरूपेण समर्थ है।
जैन भारती : प. पू. माताजी ने इस ग्रंथ को वी. सं. २५०१ (सन् १९७५) को पूर्ण किया। जैनधर्म का आमूल-चूल ज्ञान प्राप्त करने के लिये जैन एवं जैनेतर सभी के लिये महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। चार खण्ड में चार अनुयोगों को बहुत ही सुगम शैली में प्रतिपादित किया है। इसमें एक-एक अनुयोग के विषय प्रारंभ से अंत तक संक्षेप में दिये हैं। इसका आठवाँ संस्करन पृष्टसंख्या ३६ + २३६ के साथ वी. सं. २५३४ (सन् २००८) में प्रकाशित हो चुका है जो इसकी लोकप्रियता सिद्ध करता है।
महावीर देशना : भगवान महावीर स्वामी के २६०० वें जन्मजयंति वर्ष के अन्तर्गत वी. सं. २५२७ सन् २००१ में इस ग्रंथ को लिखा इस ग्रंथ में ९ अधिकारों में भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर, गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान कल्याणक, भगवान महावीर का समवसरण, प्रथम दिव्यध्वनि, द्वादशांग, गौतमस्वामी परिचय, चौबीस तीर्थंकर, दिगम्बर जैन मुनिचर्या, मुनियों भेद-प्रभेद वर्षायोग, आर्यिका चर्या, श्रावकचर्या, सोलह कारण भावना, दशलक्षण धर्म आदि का वर्णन है । इसका द्वितीय संस्करण वी. सं. २५३५ (सन् २००९) में पृष्ठसंख्या ३२ + ५६८ के साथ प्रकाशित हो चुका है।
૨૭૦ + ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો