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विधाएँ, न्याय, कोश, व्याकरण, काव्य, कथा, इतिहास, तत्त्वज्ञान, आगम, गणित, ज्योतिष, धर्म-सिद्धांत आदि विषयक अनेक ग्रंथ रचनाओं के द्वारा आपने अपनी साहित्यिक प्रतिभा को दर्शाया है। आचार्य श्री द्वारा प्रणीत साहित्य को संक्षेप में दर्शन का क्षुद्र प्रयास किया है -
१. अक्षय तृतीया कथा - यह कथा स्वतंत्र मुद्रित न होकर अभिधान राजेन्द्र कोष में प्रथम भाग में (अक्खरइतया) शब्द के अन्तर्गत पृष्ठ १३३ पर मुद्रित हैं। प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान को अंतरायकर्म का उदय होने से एक वर्ष पर्यन्त निराहार रहना पड़ा। अक्षय तृतीया के दिन १३ महीने १० दिन के बाद श्री आदिनाथजी ने गजपुर (हस्तिनापुर)नगर में अपने सांसारिक पौत्र सोमप्रभ के पुत्र श्रेयांसकुमार के हाथों से इक्षुरस से पाराणा किया था।
२. अघट कुँवर चौपाई - इस खंड-काव्य की रचना आचार्य श्री ने वि. सं. १९३२ में जालोर में की थी। इस काव्य में आचार्य श्री ने अघटकुमार के माध्यम से मुनि-निंदा एवं जीव हिंसा के भाव का विपाक (फल) तथा सुपात्र दान, जिन पूजा एवं अहिंसा व्रत के पालन के प्रभाव का विशद् वर्णन किया है। इस काव्य में १३ ढालें है। प्रत्येक ढाल के प्रारम्भ में १, २, ३ या चार छंद दिये है एवं प्रत्येक ढाल में विविध देशी-राग-रागिनियों में अघट कँवर के जीवन का वर्णन किया है।
३. अष्टाह्निका व्याख्यान - 'बाल बोधिनी टीका' के नाम से आचार्य राजेन्द्रसूरीश्वरजी ने वि. सं. १९२७ (म. प्र.) चातुर्मास में कार्तिक कृष्णा तृतीया को की है। इस ग्रंथ में प्रथम कुक्षीस्थ श्री शांतिनाथ भगवान का मंगलाचरण तत्पश्चात् प्रथम व्याख्यान में नंदीश्वर द्वीप में देवगमन, पर्युषण पर्व में श्रावकों के कर्तव्य, अभयदान के विषय में पाँचों राणी एवं चोर की कथा, द्वितीय व्याख्यान में जिनदर्शन पर शय्यंभव भट्ट एवं जिनवाणी की महिमा के विषय में रोहिणेय चोर की कथा तथा सामयिक व्रत के विषय में पुणिया श्रावक की कथा, व्रतभंग के भाव से होने वाली दुर्गति के विषय में आद्रकुमार की कथा, तृतीय व्याख्यान में पतिथि की आराधना के विषय में सूर्ययशा राजा की कथा एवं अनित्य भावना पर भरत चक्रवर्ती की कथा है। __४. उपासकदशा - वालाववोध - उपासकदशांग सूत्र में भगवान महावीर के आनंद आदि दस श्रावकों के जीवन का वर्णन है। आचार्य श्री ने लोक-कल्याण हेतु वि. सं. १९५४ में खाचरोद में इस ग्रंथ का तत्कालीन मारवाडी-गुजराती-मालवा मिश्रित भाषा में वालावबोध नाम से अनुवाद किया है। जिससे साधारण-जन भी आगमों के ज्ञान का लाभ प्राप्त कर सकें। इस ग्रंथ में प्रथम अनुबंध-चतुष्टय है। तत्पश्चात उपाशक दशा सूत्र के दसों अध्ययन (१) आनंद, (२) कामदेव, (३) चुलापिया, (४) सुरादेव, (५) चुल्लशतक, (६) कुंडकोलिक, (७) सद्दालपुत्र, (८) महाशतक, (९) नंदिणीपिया, (१०) सालिणी-पिया इन दस श्रावकों के नाम से है। इनमें प्रत्येक अध्ययन में अक-अक श्रावक का वर्णन है। उनके नगर, उद्यान,
श्रीमद् राजेन्द्रसूरिः ओक महान विभूति की ज्ञान ओवं तपः साधना + ४२१