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वे आगे लिखते हैं कि निशंक रूप से कहा जा सकता है कि इसमें शास्त्रीय मर्यादाओं का पालन करने का यथाशक्य प्रयत्न किया है | जहाँ कहीं किसी विषय में अनुमान या कल्पना का सहारा लेना पडा है तो सिद्धांत की सीमा का उल्लंघन न हो उसकी पूरी सावधानी रखने का प्रयत्न किया गया है।
ये प्रस्तावनायें विवेच्य पुस्तक उपरांत उस विषय से संबंधित अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारी से भरपूर है इसलिये एक पठनीय पुस्तिका का रूप ले लेती हैं | वुद्धि की कसोटीरूप ये प्रस्तावनामें किसी भी विषय के समुद्र रूपी ज्ञानसभर पुस्तक का सार-सूक्ष्म रूप करके एक छोटे से लोटे रूप कुछ पृष्ठों में समाविष्ट करने की कुनह से सर्जित होती है । प्रस्तावनाओं में आ. श्री का सूक्ष्म निरीक्षण एवं तथ्यों की सत्य-परकता का आग्रह, ये दो महत्त्व के लक्षण वाचक को अभिभूत कर देते हैं ।
विद्वान शिरोमणि एवं कई वहुमूल्य पुस्तकों के सर्जक डॉ. रमणभाई सी. शाह ने वहुमुखी प्रतिभावंत आ. श्री के वहुमूल्य लेखन एवं संशोधन कार्य का वहुमान करते हुये इस प्रस्तावना संग्रह' को 'ग्रंथशिरोमणि' और इसमें दी हुई सत्त्वशील सामग्री काल को जीतकर हमेशा नई जैसी मूल्यवान रहेगी ऐसे उद्गार व्यक्त किये हैं।
मंजुला महन्द्र गांधी D/२०५, पूर्णिमा एपार्टमन्ट, २३, पंडर रोड, मुंबई-४०००२६
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साहित्य कलारत्न श्री विजय यशोदेवसूरि + ५२७