Book Title: Jain Sahityana Akshar Aradhako
Author(s): Malti Shah
Publisher: Virtattva Prakashak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 640
________________ प्रामाणिक वनाती है । महानुभावों के नामोल्लेख यह बताते हैं कि वे खुद अध्यापन करके विनम्रता को पाने में सफल हुए हैं । मूल पाट, अर्थ और विवेचना सभी में संपादक मुनिजी की बुद्धिचातुर्य निखारकर आई है । कल्पसूत्र कोई अलग ग्रंथ या आगम नहीं है बल्कि दशाश्रुतस्कंध का आटवाँ अध्याय है, यह तथ्य उनकी गहराई से की गई खोज का परिणाम है । उनकी भाषा में ओज है, लालित्य है और भावों में गाम्भीर्य है। आचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी की सारी पुस्तकें सारे ग्रंथ अभी तक भले ही मैंने नहीं पढे हैं बल्कि जितने भी पढे हैं उन सबसे अद्भुत ज्ञानरस उत्पन्न होता है। और मेरी यह मनिपा है कि मेरा यह संदेश में आप जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास करूँ ताकि आप भी इस पावन ज्ञानगंगा में डूबकी लगाएँ । इनसे सारी जिज्ञासा तृप्त होती है । इनकी एक एक वात प्रमाण द्वारा बताने से वचन से अगोचर है। में उनकी और कृतियों को भी मेरी पुण्य क्षणों में अवश्य पढना जारी रखूगी । और आशा रखती हूँ कि सभी पाटकगण उनके ग्रंथों का नित्य स्वाध्याय करें । उन्होंने अपने गम्भीर अध्ययनवल और सृजनशक्ति का अधिक से अधिकतम उपयोग करके उत्तरोत्तर सभी लखनकार्य का सफल बनाने का अद्भुत सफल प्रयास किया है । स्थानकवासी सम्प्रदाय के वे उदीयमान लेखक है । पुस्तकालय और ग्रंथागार उनके ग्रंथों के संग्रह से समृद्ध बने हैं यह लिखने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है । उन्होंने न केवल जैनशास्त्रों के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं बल्कि जैनेतर शास्त्रों के दृष्टांत भी जगह-जगह पर प्रस्तुत किए हैं । इसी कारण उन्होंने अपने ग्रंथों के मूल्यो को वढाया है । उनके ग्रंथ ग्रंथ वनकर नहीं रह गये वल्कि ग्रंथराज की श्रेणी में आकर शोभा में चार चाँद लगाते हैं। आचार्यश्रीने सारा श्रेय अपने गुरुवरथी पुष्करमुनिजी को दिया है । वे खुद को कर्ता और अपने गुरुजी को निमित्त रूप में प्रस्तुत करते हैं । यह उनका वडप्पन है । उन्होंने कहीं भी आत्मप्रशंसा का स्थान नहीं दिया है | आगमप्रभाकर श्री पुण्यविजयजी महाराज की सहायता से श्री देवेन्द्रमुनिने कल्पसूत्र आगमग्रंथ के अन्तर्गत ही है इस तथ्य को सिद्ध करके विद्वानों की शंका का समाधान किया है। आ. श्री देवन्द्रमुनिजी विशाल दृष्टि सम्पन्न प्रभावशाली लेखक हैं । साम्प्रदायिकता के दायरे में न आकर उससे कई ज्यादा उपर उठकर जैनदर्शन के सिद्धांतो को ही उजागर करने का उन्होंने विनम्र प्रयास किया है | यह उनकी दीर्घदृष्टि, तीक्ष्णबुद्धि और उच्चतम कोटि का चिंतन ही है जो उनके लेखन-संपादन को अर्थबोधसभर बना सके हैं । वे एक सफल साहित्यकार के रूप में सदा अमर रहेंगे । खंडन-मंडन की प्रवृत्तियों से वह हमेशा परे रहे हैं। सिर्फ और सिर्फ सत्य तथ्य का समुद्घाटन करना यही उनका सर्वोच्च लक्ष्य रहा है, और उनके इन्हीं गुणों की वजह से आज वह उच्च कोटि के साहित्यकार के रूप में प्रतिष्टित हुए हैं। उनकी एक भी कृति ऐसा नहीं जो पाठक को अपनी लेखनी के प्रवाह में वहा कर न ले जा सकी हो । आचार्यश्री देवेन्द्रमुनि (एक साहित्यकार) + ५८१

Loading...

Page Navigation
1 ... 638 639 640 641 642