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पालन एवं अनुशासन हेतु आचार्य नियमों की रचना की जिसे मर्यादापट्टक कहते है। इस मर्यादापट्टक में २५ नियम हैं।
४०. साधु वैराग्याचार सज्झाय - इसमें २६ गाथा में साध्वाचार के दोषों का वर्णन कर, उसका प्रायश्चित्त दंड दिखाकर साधुओं को ज्ञान-गर्भित वैराग्यवासित जीवन सावधानीपूर्वक यापन करने का निर्देश दिया है।
४१. सिद्धाचल देववंदन - इसमें सिद्धाचल तीर्थ की आराधना-विधि का वर्णन हैं। तीर्थ की नवाणु (९९) यात्रा की विधि एवं यात्रा के नियम दिये हैं।
४२. सिद्धचक्र (नवपद) पूजा - प्रत्येक पूजा के प्रारम्भ में हिंदी एवं प्राकृत में दोहा, प्रारम्भिक श्लोक एवं एक-एक पद की दो-दो ढालें एवं अंत में 'धनाश्री राग में 'लश दिया गया है। 'लश' में 'नवपद' की महिमा, श्रीपाल राजा एवं मयणा सुंदरी का वर्णन एवं राजेन्द्रसूरि की पाट परंपरा एवं पूजा का रचना काल वताया है।
४३. सिद्धांत प्रकाश - इस ग्रंथ में आचार्य श्री ने झवेरसागरजी एवं वालचंद्र उपाध्याय से हुए त्रिस्तुतिक सिद्धांत विपयक शास्त्रार्थ के समय प्रतिपक्षी को उत्तर देने के लिए इस ग्रंथ की रचना की है, जिसके फलस्वरूप आचार्य श्री विजयी बने थे।
४४. षड्द्रव्य विचार - यह ग्रंथ मालवी भाषा में रचित है। प्रस्तुत ग्रंथ में जैनदर्शन के अनुसार विश्व के मूल छः तत्त्वों - १. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, ३. आकाशस्तिकाय, ४. पुद्गलास्तिकाय, ५. जीवास्तिकाय और ६. काल - का स्पष्टीकरण किया गया है। साथ ही नय, प्रमाण एवं सप्तभंगी की सुंदर व्याख्या की है। तत्त्वज्ञान की प्राप्ति एवं समझ के लिये यह ग्रंथ उपयोगी है।
४५. होलिका आख्यान (प्रबंध) - यह संस्कृत प्रवंध है। इस में होली नामक पर्व को भारतीय जनता अश्लील चेप्टा-पूर्वक रीति से मनाती है, जो कि वास्तव में कर्म सिद्धान्तानुसार कर्मबंधन करवाता है। आचार्य श्री ने सुज्ञजनों को इस अन्धानुकरण रूप मिथ्या पर्व से दूर रहने को कहा है।
आचार्य श्री ने कई और भी ग्रंथों की रचना की है - १. उत्तम कुमारांपन्यास - (गद्य संस्कृत) २. सद्य गाहापयरण - (सूक्ति संग्रह) ३. मुनिपति राजर्पि चौपाई ४. त्रैलोक्यापिका - यंत्रावली ५. चतुःकर्मग्रंथ - अक्षरार्थ ६. पंचाख्यान कथासार ७. पडावश्यक - अक्षरार्थ ८. द्वापष्टिमार्गणा - यंत्रावली ९. सारस्वत व्याकरण भापा टीका १०. कर्तुरीप्सिततमं कर्म श्लोक व्याख्या ११. सप्ततिशतस्थान - यंत्रावली ૪૨૬ + ૧લ્મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો