Book Title: Jain Sahityana Akshar Aradhako
Author(s): Malti Shah
Publisher: Virtattva Prakashak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 573
________________ लिपि, जीव क्षमापनासूत्र सात लाख, अशोक और शालवृक्ष के चित्र, भारत का महावीर कालीन मानचित्र, कल्पसूत्र की पद्धति के चार चित्रों का परिचय आदि अनेक नई एवं रसद सामग्री का समावेश है । आ. श्रीकी यह सर्वांगसुंदर साहत्यिक एवं कलात्मक गौरवदायी कृति व्यक्तिगत ग्रंथसंग्रहों की शोभा में अभिवृद्धि करने वाली है । ऋषिमण्डल स्तोत्र एवं यंत्र का संशोधनात्मक कार्य : - प.पू. वयोवृद्ध आ. श्री सिद्धिसूरि वापजी की प्रेरणा से मुनिश्रीने नव महिने के समय में भिन्न-भिन्न शास्त्रसंग्रह 7 ज्ञान मंदिरों से शताधिक हस्तप्रतों / पोथियों का एवं श्वेतांवर / दिगम्बर सम्प्रदाय के अनेक मुद्रित पुस्तकों का तथा वस्त्र कागजपट तथा अन्य प्रकीर्णक साहित्य का अवगाहन करके, पाठभेदों के वैविध्य और वैचित्र्य का व्याकरण / छंद आदि की दृष्टि से समीक्षा करके संतुलन विटाकर, उन पर चिंतन-मनन- संशोधन करके तर्कपूर्ण शास्त्र सम्मत शुद्ध ऋपिमण्डल स्तोत्र एवं यंत्र वि.सं. २०२७ में जैन समुदाय के सामने प्रस्तुत किया । इस अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य के लिये समग्र जैन समाज आचार्य श्री का हमेशां ऋणी रहेगा । व्याकरणछंद-भाषा-साहित्य में डाक्टरेट संशोधन कार्य करने वालों के लिये आ. श्री की यह सर्वांगसुंदर साहित्यिक कृति मार्गदर्शनरूप है । आ. श्री द्वारा संशोधित एवं संपादित ऋपिमंडल यंत्र की १०००० से अधिक कृतियाँ प्रकट हो चुकी हैं एवं आराधक आत्माओं द्वारा अनन्य भक्तिभावपूर्वक आराधना में उपयोग किया जाता है । इसी संदर्भ में 'ऋपिमण्डल यन्त्रपूजनम् प्रताकार वि.सं. २०३८ सन् १९८२ में प्रकाशित प्रस्तावना संग्रह में दी गई ३७ पृष्टों की प्रस्तावना पूजनविधि-विधान की कई रसप्रद वातें प्रकाश में लाती है । आ. श्री की किसी भी विषय पर शास्त्रप्रामाणिकता अनुसार कार्य करने की निप्टा विशेष रूप से परिलक्षित होती है | 'तदुपरांत ऋषिमण्डल स्तोत्र एक स्वाध्याय तथा ऋषिमण्डल मूल मंत्र एक चिंतन' की वि.सं. २०४६ सन् १९९० में प्रकाशित आवृत्तिमें आ. श्री ने अत्यंत अनिवार्य सुधारों का सूचन किया है और उसकी पुष्टि महावीर जैन विद्यालय कं भण्डार से प्राप्त प्रति एवं एक अन्य के आधार पर की है । तीर्थंकरों की प्रश्रयी : इस पुस्तक में तीन विवादात्मक विषयों पर मीमांसा करके आगम-सम्मत निराकरण करके स्पष्ट निष्कर्ष एवं निवेश दिया है । इसमें तीर्थंकर देव के अष्ट प्रातिहार्यो में से ( १ ) तीन छत्र और (२) अशोक वृक्ष चैत्यवृक्ष का स्पष्टीकरण किया है तथा उनके (३) केश-नख वृद्धि के वारे में परंपरागत मान्यताओं में भिन्नता का निराकरण किया है । छत्रत्रय: तीर्थंकर देव की प्रतिमा या छवि के ऊपर प्रदर्शित तीन छत्री के ૫૨૪ - ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો

Loading...

Page Navigation
1 ... 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642