________________
वनखंड, भगवान का समवसरण, राजा, परिवार, धर्माचार्य, भोग, भोग- त्याग, बारह व्रत, व्रत के अतिचार, प्रतिमा, उपसर्ग, संलेखना प्रत्याख्यान, अनशन, स्वर्गगमन आदि का विस्तृत वर्णन है।
५. एक सौ आठ बोल का थोकडा - इस पुस्तक की रचना आचार्य श्री ने वि. सं. १९३४ में राजगढ में की। इसमें मननीय १०८ बातों का अनुपम संग्रह है । ६. कमलप्रभा शुद्धरहस्य - इसकी रचना आचार्य श्री ने अपने अंतिम वर्षावास वि. सं. १९६३ बडनगर (म.प्र.) में की।
७. कल्पसूत्रार्थ प्रबोधिनी - इस ग्रंथ की रचना रतलाम में वि. सं. १९५४ में की थी। यह ग्रंथ दशाश्रुतस्कन्धसूत्र के अष्टम अध्ययन रूप श्री भद्रबाहुस्वामी प्रणीत श्री कल्पसूत्र की संस्कृत टीका है। यह ग्रंथ नौ व्याख्यानों में विभक्त है। प्रथम पाँच व्याख्यानों में महावीर चरित्र, छटे व्याख्यान में पार्श्वनाथ चरित्र, सातवें में नेमिनाथ चरित्र, आठवें में आदिनाथ चरित्र एवं नौवें व्याख्यान में स्थविरावली एवं समाचारी का वर्णन है ।
८. कल्पसूत्र वालावबांध श्री भगवान महावीर स्वामी ने राजगृही के गुणशील चैत्य नामक स्थान में बारह पर्पदा ( तीर्थंकर के समवसरण की सभा) के बीच नौवें प्रत्याख्यान पूर्व के दशाश्रुतस्कंध सूत्र के श्री पर्युषण कल्प नामक अध्ययन कहा था। उस पर श्री भद्रवाहुस्वामी ने १२१६ श्लोक प्रमाण श्री कल्पसूत्र (बारसा सूत्र) के नाम से उज्जैन में ग्रंथ रचना की थी। उस कल्पसूत्र की मूल एवं चूर्णि, निर्युक्ति, टीका आदि के साथ प्राचीन ग्रंथ मंगवाकर आचार्य श्री ने उसके आधार पर मूल ग्रंथ न देते हुए उसी के संक्षेप अर्थ लेकर एवं टीका के कुछ कथा भाग लेकर करीव ५५०० श्लोक प्रमाण श्री कल्पसूत्र वालाववोध नामक इस ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में कुल नव व्याख्यान हैं। इस ग्रंथ की भाषा मारवाडी-मालवी मिश्रित गुजराती है। श्री सौधर्म वृहत्तपागच्छीय त्रिस्तुतिक मूर्तिपूजक जैन श्वेतांवर श्री संघ के प्रत्येक गाँव-नगर में श्री पर्युषण महापर्व में भादवा वदि अमावस्या (वडाकल्प) से संवत्सरी महापर्व तक सभा में इस ग्रंथ के वाचन श्रवण की परम्परा है।
-
-
९. केसरियानाथ विनंतीकरण बृहत्स्तवन- इस वृहत्स्तवन की रचना वि. सं. १९५४ में रतलाम (चातुर्मास ) में की थी । ३९ गाथा प्रमाण इस स्तवन में आचार्य श्री ने धुलेवा (राज.) स्थित प्रथम तीर्थंकर कंसरियानाथ श्री ऋषभदेवजी के गुण एवं प्रभावों का वर्णन करते हुए अंत में परमात्मा को इस संसार समुद्र से पार उतारने हेतु विनंती की है।
१०. खर्परतस्कर प्रबंध - पर-दुःख भंजक महाराजा विक्रमादित्य के शासनकाल में खर्पर नामक एक चोर अवंती एवं उसके निकटवर्ती प्रदेश की प्रजा को अपने अधम कृत्यों से परेशान करता था, जिसे स्वयं महाराजा विक्रम ने महाभगीरथ प्रयत्नों से परास्त कर दिया। आचार्य श्री ने इसी ऐतिहासिक प्रसंग का संस्कृत में ८०० पधों (श्लोकों) में वर्णन किया है।
૪૨૨ ૧ ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો