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का निक्षेप, मार्ग के स्वरूप का विवेचन आदि अनेक विषय दिए हैं।
‘मरण' (मृत्यु) मृत्यु के भेद, मरण की विधि, अकाममरण, सकाममरण, बालमरण, विमोक्षाध्ययनोक्त मरण विधि आदि दिए हैं।
____ 'मल्लि' (मल्लिनाथ) इस शब्द से उन्नीसवें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ भगवान के पूर्व व तीर्थंकर भव का सविस्तार वर्णन है।
'मोक्स' (मोक्ष) शब्द पर मोक्ष की सिद्धि, निर्वाण की सत्ता है या नहीं इसकी सिद्धि, मोक्ष, ज्ञान और क्रिया से ही मिलता है, धर्माचरण करने का फल मोक्ष ही है, मोक्ष पर अन्य दार्शनिकों की मान्यताएँ, स्त्री मोक्ष में जा सकती है इसका विवेचन, मोक्ष के क्या-क्या उपाय है आदि विषयों पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है।
‘रओहरण' (रजोहरण) इस शब्द पर बताया गया है कि रजोहरण क्या चीज है, उसका उपयोग क्या है, इसकी व्युत्पत्ति क्या है, चर्म चक्षुवाले जीवों को सूक्ष्म जीव नजर नहीं आ सकते हैं इसलिए उन्हे रजोहरण धारण करना चाहिए।
'राइभोयन' (रात्रि भोजन) इस शब्द पर रात्रि भोजन का त्याग, रात्रि भोजन करने वाला अनुद्घातिक है, रात्रि भोजन के चार प्रकार, रात्रि भोजन का प्रायश्चित्त, औषधि के रात्रि में लेने के विचार आदि विषय दिए हैं। ___लेस्सा' (लेश्या) शब्द पर लेश्या का स्वरूप, लेश्या के भेद, कौन सी लेश्या कितने ज्ञानों में मिलती है, लेश्या किस वर्ण से साबित होती है, मनुष्यों की लेश्या, लेश्याओं में गुण स्थानक, धर्मध्वनियों की लेश्या आदि का वर्णन है।
'विहार' (विचरण) इस शब्द पर आचार्य और उपाध्याय के अकाकी विहार करने का निषेध, किसके साथ विहार करना और किसके साथ नहीं करना इसका विवेचन, वर्षाकाल में विहार पर विचार व निषेध, नदी के पार जाने में विधि, साधु-साध्वियों का रात्रि में या विकाल में विहार करने का विचार इत्यादि विषयों पर प्रकाश डाला है। जिन-जिन शब्दों पर कथा, उपकथाएँ आई हैं उनका भी भली-भाँति विवेचन किया है।
अभिधान राजेन्द्र कोष का सप्तम भाग ___ अभिधान राजेन्द्र कोष का यह अंतिम भाग है। इस भाग में मंगलाचरण नहीं है। इस भाग में श, ष, स और ह है। इन चार अक्षरों के शब्दों पर ही विवेचन किया गया है। इस बाग में 'श' इस अक्षर से शब्दों का वर्णन शुरू हुआ है और 'ह' इस अक्षर पर समाप्त हुआ है।
इस भाग में १२५१ पृष्ठ है। 'स' अक्षर पर प्रारम्भ होने वाले शब्दों पर तो ११६९ पृष्ठों में वर्णन है। कतिपय शब्दों की झलक निम्नलिखित है - _ 'संथार' (संसार) इस शब्द पर संसार की व्यग्रदशा, संसार की असार अवस्था, संसार में मनुष्य अपने जीवन को किस प्रकार दुर्व्यवस्था से व्यतीत करता है आदि का अच्छा वर्णन किया है।
श्रीमद् राजेन्द्रसूरिः ओक महान विभूति की ज्ञान अवं तपः साधना + ४१८