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सिद्धनमस्कार, नमस्कार का क्रम आदि अनेक योग्य विषय दिये हैं।
___णय' (नय) शब्द पर नय का लक्ष्ण, सप्तभंड्गी (सप्तभंड्गी) वस्तु का अनंत धर्मात्मकत्व, नय प्रमाण शुद्धि आदि दिये है।
'सिद्धसेन दिवाकर' के कथनानुसार ६ नय, ७०० नय, कौन सा दर्शन किस नय से उत्पन्न हुआ इसका सुन्दर विश्लेषण आदि अनेक विषयों पर सुन्दर विवेचन दिया है।
‘णरग' (नरक) शब्द पर नरक की व्याख्या, भेद, नरक के दुःखों का वर्णन, नरक के अनेक प्रकार के स्वरूप आदि। _ 'तित्थयर' (तीर्थंकर) शब्द पर तीर्थंकर की व्युत्पत्ति और इसका विवेचन, तीर्थंकरों के अतिशय, तीर्थंकरों के अंतर, तीर्थंकरो के आदेश, आवश्यक आदि दिए है।
तीर्थंकर नाम, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव, तीर्थोत्पति, दीक्षाकाल आदि दिए है। तीर्थंकरों के पूर्वभवों के वर्णन, श्रावक संख्या, गणधरों की सख्या, मुनियों की संख्या आदि विषयों का वर्णन किया गया है।
___ 'धम्म' (धर्म) शब्द पर धर्म शब्द की व्याख्या, लक्षण, व्युत्पत्ति, धर्म के भेदप्रभेद, धर्मके चिह्न, धर्माधिकारी, धर्मरक्षक, धर्मोपदेश का विस्तार आदि सुंदर रूप से विषय का प्रतिपादन किया है।
इस चौथे भाग में विषय का प्रतिपादन करने के लिए अनेक शब्दों पर कथा या उपकथाएँ आदि भी दी है।
अभिधान राजेन्द्र कोष का पंचम भाग
मंगलाचरण वीरं नमेऊण सुरेसपुज्जं, सारं गहेऊण तयागमाओ।
साहूण सढडाण य बोहयं तं, वोच्छामि भागम्मि य पंचमम्मि॥ पांचवे भाग का प्रारम्भ 'प' अक्षर से किया गया है और “भोल' शब्द पर इस भाग की समाप्ति हुई है। इस भाग में १६२७ पृष्ठ संख्या है। इस भाग में प, फ, ब, और भ केवल इन चार अक्षरों के शब्दों पर ही पूरा विवेचन किया है। 'प' वर्ण पृष्ठ क्रमांक एक से प्रारम्भ होकर पृष्ठ क्रमांक ११४० पर 'प्रिय' शब्द पर समाप्त हुआ है।
‘पच्चक्खाण' (प्रत्याख्यान) शब्द पर अहिंसा आदि दस प्रत्याख्यानों पर सुंदर विस्तार, प्रत्याख्यानों की विधि, दान विधि, प्रत्याख्यान शुद्धि, प्रत्याख्यानों की छः विधि, ज्ञानशुद्धि, श्रावक का प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान का फल आदि अनेक विषयों का प्रतिपादन है।
श्रीमद् राजेन्द्रसूरिः ओक महान विभूति की ज्ञान ओवं तपः साधना + ४१७