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रूप में प्रदर्शित किया है।
चारित्र' (चरित्र) शब्द पर सामायिकादि पाँच चारित्रों का सुन्दर वर्णन, चारित्र की प्राप्ति किस तरह होती है इसका प्रतिपादन, चारित्र से हीन ज्ञान मोक्ष का साधन नहीं होता। वीतराग का चारित्र न बढता है न घटता है। आहार शुद्धि ही प्रायः चारित्र का कारण है। आदि विषयों का वर्णन है। 'चेइथ' (चैत्य) शब्द पर चैत्य (मंदिर) का अर्थ, प्रतिमा की सिद्धि, चैत्य शब्द का अर्थ, चमरकृत चंदन, देवकृत चैत्यवंदन जिन पूजन से वैयावृत्य, तीन स्तुति, जिन भवन बनाने में विधि, प्रतिमा बनाने में विधि, प्रतिष्ठा विधि, आदि अनेक विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
इस तीसरे भाग में जिन-जिन शब्दों पर कथाएँ उपकथाएँ आगमों में मिलती हैं उनको भी उन शब्दों के साथ-साथ दे दिया गया है।
अभिधान राजेन्द्र कोष का चतुर्थ भाग
मंगलाचरण नामिऊण वद्धमाणं, सारं गहिऊण आगमाणं व।
अहुणा चउत्थमागं, वोच्छ अभिहाण राइंदे॥ यह चतुर्थ भाग 'ज' अक्षर से प्रारम्भ किया गया है और 'नौर्माल्या' इस शब्द पर समाप्त किया गया है। इस भाग में १४१४ पृष्ट हैं। वैसे इस भाग में तीसरे भाग के १३६३ पृष्ट से आगे पृष्ट नंबर १३६४ से प्रारम्भ करके २७७७ तक की पृष्ठ संख्या दी है।
इसभाग में ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध न इन बारह अक्षरों से प्रारम्भ होने वाले सभी शब्दों पर खूब विवेचना पूर्वक प्रकाश डाला गया है। केवल 'ण' अक्षर से प्रारम्भ होने वाले शब्दों पर ४२९ पृष्ट दिए है। 'ढ' शब्द से शुरू होने वाले शब्दों का पूरा एक पृष्ट है।
अब इस भाग में जो शब्द महत्वपूर्ण है उनमे से कुछ का वर्णन निम्न है:
'जीव' शब्द पर जीव उत्पत्ति, जीव के सांसारी एवं सिद्ध के भेद से जीव के दो भेद, जीव का लक्षण, हाथी और मच्छर में एक समान जीव है इसका प्रतिपादन, आत्मा संबंधी सभी विषय दिये है।
'झाण' (ध्यान) शब्द पर ध्यान का महत्व, इसके भेद, ध्यान के आसन एवं ध्यान मोक्ष का कारण है यह अच्छी तरह समझाया है। ____णक्खत' (नक्षत्र) शब्द पर नक्षत्रों की संख्या, इनकी कार्यगति, चन्द्रनक्षत्र योग, कौन सा नक्षत्र कितने तारे वाला है, नक्षत्रो के देवता, अमावस्या में चन्द्रनक्षत्र योग आदि विषय दिये हैं।
'णम्मोकार' (नमस्कार) शब्द पर नमस्कार की व्याख्या, नमस्कार के भेद,
૪૧૬ + ૧૯ભી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધક