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छेद ग्रंथ १. निशीथसूत्र, २. महानिशीथसूत्र, ३. वृहत्कल्पसूत्र, ४. व्यवहारदशाकल्पच्छेद सूत्र, ५. पंचकल्पछेद सूत्र, ६. दशाश्रुतस्कन्धछेदसूत्र, ७. जीतकल्पच्छेदसूत्र, चार मूल सूत्र, चुलिकासूत्र इत्यादि का वर्णन है। संस्कृत भाषा में १३ पृष्ठों का उपाघात संशोधकों द्वारा लिखा गया है। सर्व प्रथम तो जैन दर्शन की उदारता के संबंध में प्रकाश डाला गया है और बताया गया है कि जैन दर्शन किसी भी व्यक्ति, मानव धर्म का द्वेषी नहीं है। उसका तो कथन है -
पक्षपातो न मे वीरे, न द्वेषः कपिलादिषु। युक्तिमद् वचनं यस्य, तस्य कार्यः परिग्रहः॥ १॥ रागद्वेषविनिर्मुक्ता-हत कतं च कृपापरम्।
प्रधानं सर्वधर्माणां, जैन जयति शासनम्॥ २॥ तत्पश्चात उपोद्घात में अहिंसा, स्यादवाद, सप्तभंगी, समवायखण्डनम्, सत्तानिरसनम अपोहस्य स्वरूप निर्वचन-पुरस्सरं निरसनम्, सत्ता पदार्थ का खण्डन, अपोहवाद का खण्डन, वेदों के अपौरुषेयत्व का खण्डन, शब्द के गुण तत्त्व का खण्डन, संसार के अद्वैतत्व का खण्डन और ईश्वरव्यापकत्व का खण्डन करते हुए अंत में जैन सिद्धांत के अनुरूप एकेन्द्रिय जीवों के भी भाव शुद्ध ज्ञान का समर्थन इन विपयों का प्रतिपादन किया है।
अभिधान राजेन्द्र कोप का प्रथम भाग 'अ' अक्षर से प्रारम्भ किया है और 'अहोहिम' शब्द पर समाप्त किया है। इस भाग में केवल अ अक्षर से बनने वाले शब्दों के ८९३ पृष्ट हैं। करीव १०००० शब्दों का वर्णन प्रथम भाग में किया गया है। इस भाग में जो मुख्यतः शब्दों के विषय आये है उनमें से कतिमय उदाहरण देखिए:
अंतर - इस शब्द पर द्वीप, पर्वतों के परस्पर अंतर, जम्बूद्वारों मे परस्पर अंतर, जिनेश्वरों के परस्पर अंतर, भगवान ऋषभदेव से महावीर तक का अंतर, ज्योतिप्कों और चन्द्रमण्डल का परस्पर अंतर, चन्द्रसूर्यो का परस्पर अंतर आदि अनेक विषयों पर प्रकाश डाला गया है। ___ 'अज्जा' (आर्या) इस शब्द पर आर्या (सावी) को गृहस्थ के सामने पुष्ट भापण करने का निषेध, विचित्र अनेक रंग के कपड़े पहनने का निपेध, गृहस्थ के कपड़े पहनने का निपेध आदि साध्वियों के योग्य जो कार्य नहीं है एवं जो कार्य उन्हें करना चाहिए उन सव का विवेचन किया गया है। ___अणेगंतवाय' इस शब्द पर स्याद्वाद का स्वरूप, अनेकांतवादियों के मत का प्रदर्शन, एकांतवादियों के दोष, हर एक वस्तु को धर्मात्मक होने में प्रमाण, वस्तु की एकांत सत्ता मानने वाले मतों का खण्डन आदि स्याद्वाद संबंधी विषय पर गहरा प्रकाश डाला हैं।