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तैयार कर ली गई। आचारांग-आचार चूला के हिंदी अनुवाद, संस्कृत छाया और टिप्पण का कार्य भी प्रारम्भ हो गया। धीरे-धीरे कार्य ने विस्तार लिया तथा सभी दिशाओं यथा पाठ संशोधन, संस्कृत छाया, हिंदी अनुवाद, समाचोलनात्मक टिप्पणी समीक्षात्मक अध्ययन, शब्द कोष आदि कार्य होने लगे। आश्चर्य की बात तो यह है कि निरूक्त कोश, एकार्थक कोश, देशी शब्द कोश, भिक्षु आगम विषय कोश आदि का निर्माण, स्त्री जाति यानि साध्वियों, समणियों एवं मुमुक्षु बहिनों द्वारा किया गया।
__ प्रवचन साहित्य की एक विशेष विद्या है। आप एक प्रखर प्रवचनकार एवं सटीक व्याख्याकार थे। आपके प्रवचन में आपकी आत्मा, आपकी साधना और आपका जीवन बोलता था। आपकी सरल और सरस वाणी से गूढ़तम आध्यात्मिक विषय भी इतने स्पष्ट और हृदयग्राही हो जाते थे कि साधारण से साधारण श्रोता के लिए भी आसानी से बोधगम्य हो जाते थे। बीच-बीच में पद्य, गीत, कथानक
और समीक्षात्मक टिप्पणी के कारण वे और भी उपादेय एवं सर्वजनहिताय हो जाते थे। प्रवचनों में अध्ययन की ठोसता, अनुभव की प्रवणता और व्यवहार की दक्षता होने के कारण अर्थ के गांभीर्य के साथ वे नई दिशा, नई दृष्टि और नया दर्शन प्रदान करते थे।
तुलसी वाङ्गमय के महत्त्वपूर्ण अंग के रूप में प्रकाशित 'प्रवचन प्राथेय ग्रंथमाला' के विभिन्न पुष्पों (भाग) की उपादेयता असंदिग्ध है। इनके स्वाध्याय से मानव आज भी अपना नैतिक व चारित्रिक उद्धार कर सकता है। इसी तरह पत्र साहित्य का भी अपना अलग ही महत्त्व है। आपके द्वारा अपने शिष्यों को लिखे गए पत्र गुरु-शिष्यों के सम्बधों के महाभाष्य है। ये पत्र आपके विचार एवं अनुभूतियों के परिचायक है। इनमें अंतरात्मा का स्पर्श है जो सीधे पाठक के अन्तःस्तल को छूती है। कभी आत्मीयता, कभी मधुरता और कभी तीखापन लिये ये बोधपाठ देते है। इन पत्रों की भाषा, शैली एवं विषय की विविधता पत्र साहित्य के भाषाशास्त्रीय और मानसशास्त्रीय अध्ययन की अपेक्षा का अनुभव कराते है। पत्र मुख्यतः राजस्थानी और हिंदी भाषा में है। संस्कृत और गुजराती में भी है। कुछ पत्रों पर मेवाड़ी, मारवाड़ी, हरियाणवी आदि बोलियों का भी प्रभाव है। पत्रों के विषय भी विभिन्न आयामों को समेटे हुए है - यथा साधना, सेवा, शिक्षा, आस्था, संधीय व्यवस्था, सुरक्षा, चिंता अनुशासन, सजगता आदि।
___ आप एक लेखक, प्रशासक, प्रवचनकार से भी बढ़कर एक कवि थे। आपका कवित्व स्वयं स्फूर्त था और बाल्यकाल से ही प्रस्फुटित हो रहा था। मुनिजीवन धारण करने के कुछ ही समय बाद अपने गुरु को काव्य रूप में श्रद्धासुमन अर्पित किये उसका एक पद देखिए -
'महर राखो महाराय, लख चाकर पद कमल नो,
सीख आपो सुखदाय, जिम जल्दी शिवपति लहूं। सोलह वर्ष की अवस्था में आप स्तर की कविताएं करने लगे। जब आप अपने ૧૯૮ + ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો