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जाए। सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई आदि भी प्रयत्नशील थे। गुरूदेव को हवाई जहाज से ले जाने की पेशकश की, जिसे वे नहीं माने। बोले कि मैं सभी के साथ ही भारत जाउंगा, अकेले नहीं। जब तक श्री संघ का एक भी बच्चा यहां मौजूद है, मैं अकेला नहीं हिलूंगा ।"
सितम्बर १९४७ के अंतिम हफ्ते में, शायद २७ सितम्बर को गुरूदेव वहां से निकले । कुल १४ ट्रक थे। हिंदुओं को वहां से निकालने के लिए आफिसर साहनी थे और डी. सी. मि. मिढ्ढा थे। शाम को पता आ गया था कि कल को ट्रक आएंगे। उस दिन गुरू महाराज पैदल चल कर श्री विजयानंदसूरि की समाधि पर ( एक मील) प्रार्थना करने चले गए। श्री जनक विजय ने हाथ पकडा हुआ था और श्री समुद्र विजयजी साथ थे। उन्होंने एक बार पीछे देखा, फिर आगे बढ गए। जैन परिवार जिनमें स्थानकवासी भी थे, सामान लेकर उपाश्रय में आ गए। तमाम ड्राईवर मुसलमान थे। दो दो मिलिट्री मैन वो भी मुसलमान थे। ट्रकों में अभी बैठा जा रहा था कि दंगाईयों का हुजुम इकट्टा हो गया। ट्रक चला दिए गए। कुछ भाई पीछे रह भी गए थे।
एक ट्रक में गुरू महाराज और सभी मुनि मण्डल बैठे। साध्वी श्री देवश्रीजी व अन्य साध्वियां भी साथ थे। सभी ट्रक डेढ मील दूर गुरूकुल पर रूके, इससे आगे दो मील पर पानी से भरी नहर थी। तभी देखा के बलवाई अपने टेलों टांगों पर नहर की तरफ भागे जा रहे थे। गुण्डे जुनूनी अनसर सभी के हाथों में टकवे, कुल्हाडी व छुरे लिए हुए थे। ट्रक गुरूकुल के बाहर खड़े कर दिए। सभी को लगा कि मौत हमारे सामने है, अब कत्लेआम होगा। माल लूटकर, जख्मी अधमरे नहर में बहा देगें।
तव हुई गुरू कृपा | हिंदु मिलिट्री की एक टुकडी पाकिस्तान से भारत आ रही थी। उसका कमाण्डर एक सिख आफिसर था । उसकी पत्नी ने कुछ दूर खडी साध्वी देवश्री जी महाराज को देखकर पहचान लिया। शायद बचपन में उसने जैन साध्वीयों को देखा होगा। उसके कहने पर, कमाण्डर ने सब को हौसला दिया और अपनी जीप पर स्टेनगन तानकर ट्रकों को अपने पीछे चलने को कहा। नहर पर पहुंच कर उसने ढंगाइयों को ललकारा कि मुंतशिर हो जाओ, नहीं हुए तो गोली चला दी जाएगी। दो तीन हवाई फायर भी किए। बलवाई भागे और खेतों में छुप गए ।
फिर आया लाहौर कैंप । यहां पता चला कि ओक तेरापंथी मुनिराज (श्री अमोलक मुनि) भी लाहौर में फंसे हुए है। आचार्य महाराज ने उनको भी साथ ले लिया और अमृतसर पहुंचे। वहां कर्फ्यू लगा होने के कारण, यह रात वृक्षों के नीचे ही गुजारी।
सभी ने गुरू महाराज की परम कृपा का उपकार माना कि बच कर आ गए, पर आपने कहा कि 'यह सब साध्वी देवश्री जी के शील संयम की कृपा से हुआ है
आचार्यश्री विजयवल्लभसूरि व्यक्तित्व-कवि-काव्य + ८५