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आंदोलनों में कैसे व कितना योगदान कर सकता है। यह सोचकर भी ताज्जुब होता है कि विजयवल्लभ के नगर प्रवेशों और सिर-वारने की राशियाँ गांधीजी के हरिजन उद्धार फण्ड और खिलाफत फण्ड में भेजे जाते थे। स्वयं विजयवल्लभसूरि तथा उन के शिष्य उपाध्याय सोहनविजय व मुख्य साध्वी देवश्रीजीने विदेशी हिंसक चीनी के विरुद्ध और खद्दर के पक्ष में इतना प्रचार किया कि लगातार कई साल पंजाब के जैनोंने खद्दर के दहेज ही दिये। पंजाव महासभाने भी खद्दर के हक में प्रस्ताव पास किये। विजयवल्लभ की अक सभा में गाया थाः
.... आज से प्रण करलो सब भाई, बन जाओ खद्दर के शौदाई
ईश्वर होंगे आप सहाई, जो बेडा पार लगाने वाले। ... बूटा ते शिवराम दो लाले, खद्दर दे जिन्हां दाज सिला लये
बौनियां कर दिखलाइयां, वे स्वामी तेरे लैक्वर ने। हिंदी, स्वदेशी, खिलाफत आंदोलन की हिमायत के साथ-साथ वे महात्मा गांधी, लाला लाजपतराय, डॉ. किचलू, मोतीलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्रप्रसाद, सरदार पटेल, मोरारजी देसाई, मौलाना शोकत अली, मुहम्मद अली तथा मणिलाल कोटारी आदि नेताओं के संपर्क में रहे। विजयवल्लभने घोषणा की -
'स्वतंत्र भारत का नागरिक चेतनाशील नागरिक हो,
राष्ट्र समाज और विध की संवेदनाओं को समझाने वाला हो।' स्वयं विजयवल्लभने सारी उमर खादी ही पहनी। उनके द्वारा स्थापित गुरूकुल - गुजराँवाला का प्रत्येक छात्र खद्दर के कपड़े और गांधी-टोपी पहनता था। उनके कई श्रावक - गुजराँवाला के तिलकचंद, अंबाला के विलायतीराम, राजकुमार M.sc. जालंधर के कपूरचंद, पट्टी के लाला दौलतराम व गुमानीलाल आदि गांधीजी के आंदोलनों में कूदे। सामाना के श्री सागरचंद, नाजरचंद, जगमिंदरलाल, शीतलदास व सुरेन्द्रकुमार आदि तत्कालीन गांधीवादी 'रियास्ती प्रजा मंडल' के आंदोलनों में सरगर्म रहे।
राष्ट्रहित की कुछ घोषणाएँ तथा व्याख्यानों के ओजस्वी अंशः * राष्ट्र की स्वतंत्रता के बिना धर्म, समाज और देश की उन्नति नहीं हो
सकती। * देश को दासता के बंधन से छुडाने के लिए राष्ट्रीय एकता अत्यंत जरूरी
* हिंदु, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, आर्य समाजी आदि भारत की संतान है।
सब को एक विशाल कुटुंब के समान समझना प्रत्येक भारतवासी का धर्म है। यही आज की सच्ची पूजा, सच्ची नमाज और सच्ची गुरुवाणी है। * मालेरकोटला (प्रवचन) - भारत की आजादी तभी कायम रह सकती है जब
૬૬ કે ૧૯મી અને ૨૦મી સદીના જૈન સાહિત્યનાં અક્ષર-આરાધકો