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प्रास्ताविक
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उचित द्रव्यों का ग्रहण, एक-दो-तीन गच्छयुक्त वसति से भिक्षाग्रहण करने की विधि | गच्छवासियों—स्थविरकल्पिकों की सामाचारी से सम्बन्धित निम्नोक्त बातों पर भी आचार्य ने प्रकाश डाला है : १. प्रतिलेखना - वस्त्रादि की प्रतिलेखना का काल, प्रतिलेखना के दोष और प्रायश्चित्त, २. निष्क्रमण -- उपाश्रय से बाहर 'निकलने का समय, ३. प्राभृतिका - गृहस्थ आदि के लिए तैयार किये हुए गृह आदि में रहने न रहने की विधि, ४. भिक्षा -- पिण्ड आदि के ग्रहण का समय, 'भिक्षा सम्बन्धी आवश्यक उपकरण आदि, ५. कल्पकरण - पात्र धावन की विधि, - लेपकृत और अलेपकृत पात्र, पात्र लेप के लाभ, ६. गच्छशतिकादि-सात प्रकार की सौवीरिणियाँ : ( १ ) आधाकर्मिक, ( २ ) स्वगृहयतिमिश्र, ( ३ ) स्वगृह - पाषण्ड मिश्र, ( ४ ) यावदर्थिक मिश्र, ( ५ ) क्रीतकृत, ( ६ ) पूतिकर्मिक, (७) आत्मार्थकृत, ७. अनुयान - रथयात्रा का वर्णन एवं तद्विषयक अनेक प्रकार के दोष, ८. पुरः कर्म - भिक्षादान के पूर्वं शीतल जल से हस्त आदि धोने से लगने वाले दोष, पुरः कर्म और उदकार्द्रदोष में अन्तर, पुरः कर्म सम्बन्धी प्रायश्चित्त, ९. ग्लान -- रुग्ण साधु की सेवा से होने वाली निर्जरा, रुग्ण साधु के लिए पथ्यापथ्य की गवेषणा, चिकित्सा के निमित्त वैद्य के पास जाने-आने की विधि, वैद्य से लान साधु के विषय में बातचीत करने की विधि, ग्लान साधु के लिए उपाश्रय में आये हुए वैद्य के साथ व्यवहार करने की विधि, वैद्य के लिए भोजनादि एवं औषधादि के मूल्य की व्यवस्था, रुग्ण साधु को निर्दयतापूर्वक उपाश्रय आदि में छोड़कर चले जाने वाले आचार्य को लगने वाले दोष एवं उनका प्रायश्चित्त, १०. गच्छ प्रतिबद्धयथालं दिक5- वाचना आदि कारणों से गच्छ से सम्बन्ध रखने वाले यथालंदिक कल्पधारियों के साथ वंदना आदि व्यवहार, ११ उपरिदोष- ऋतुबद्ध काल से अतिरिक्त समय में एक क्षेत्र में एक मास से अधिक रहने से लगने वाले दोष, १२. अपवाद - एक मास से अधिक रहने के आपवादिक कारण । आगे आचार्य ने यह भी बताया है कि यदि ग्राम, नगर आदि दुर्ग के अन्दर और बाहर इस प्रकार दो भागों में बसे हुए हों तो अन्दर और बाहर मिलाकर एक क्षेत्र में दो मास तक रहना विहित है । निर्ग्रन्थियों— श्रमणियों - साध्वियों के आचारविषयक विधि'विधानों की चर्चा करते हुए प्रस्तुत भाष्य में निम्न बातों का विचार किया गया है : मासकल्प की मर्यादा, विहार - विधि, समुदाय का गणधर और उसके गुण, गणधर द्वारा क्षेत्र की प्रतिलेखना, भड़ौंच में बौद्ध श्रावकों द्वारा साध्वियों का अपहरण, साध्वियों के विचरने योग्य क्षेत्र, वसति आदि, विधर्मी आदि की ओर से होने वाले उपद्रवों से रक्षा, भिक्षा के लिए जाने वाली साध्वियों की संख्या, वर्षाऋतु के अतिरिक्त एक स्थान पर रहने की अवधि | स्थविर - -कल्प और जिनकल्प इन दोनों अवस्थाओं में कौनसी अवस्था प्रधान है ? इस
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