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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
उपाश्रय में रहनेवाली निर्ग्रन्थियों को लगने वाले दोष, श्रमणों के पाँच प्रकारआचार्य, उपाध्याय, भिक्षु, स्थविर और क्षुल्लक, श्रमणियों के पाँच प्रकार - प्रवर्तिनी, अभिषेका, भिक्षुणी, स्थविरा और क्षुल्लिका, श्रमण श्रमणियों के लिए योग्य एवं निर्दोष उपाश्रय, निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के विहार का उपयुक्त काल एवं स्थान, रात्रि भोजन का निषेध आदि विषयों का समावेश है । ग्राम, नगर आदि का स्वरूप बताते हुए भाष्यकार ने बारह प्रकार के ग्रामों का उल्लेख किया है : १. उत्तान कमल्लक, २. अवाङ्मुख मल्लक, ३. सम्पुटकमल्लक, ४ . उत्तानकखण्डमल्लक, ५. अवाङ्मुखखण्डमल्लक, ६. सम्पुटकखण्डमल्लक, ७. भित्ति, ८. पडालि, ९. वलभी, १०. अक्षाटक, ११. रुचक, १२. काश्यपक । जिनकल्पिक की चर्चा में बताया गया है कि तीर्थंङ्करों अथवा गणधर आदि केवलियों के समय में जिनकल्पिक होते हैं । जिनकल्पिक की सामाचारी का निम्नलिखित २७ द्वारों से वर्णन किया गया है : १. श्रुत, २. संहनन, ३. उपसर्ग, ४. आतंक, ५. वेदना, ६. कतिजन, ७, स्थण्डिल, ८. वसति, ९. कियच्चिर, १०. उच्चार, ११. प्रस्रवण, १२. अवकाश, १३. तृणफलक, १४. संरक्षणता, १५. संस्थापनता, १६. प्राभृतिका, १७ अग्नि, १८. दीप, १९. अवधान, २०. वत्स्यथ, २१. भिक्षाचार्या, २२. पानक, २३. लेपालेप, २४. अलेप, २५. आचाम्ल, २६. प्रतिमा, २७ मासकल्प | स्थविरकल्पिकों की चर्चा करते हुए आचार्य ने बताया है कि स्थविरकल्पिक की प्रव्रज्या, शिक्षा, अर्थग्रहण, अनियतवास और निष्पत्ति जिनकल्पिक के ही समान है । विहारवर्णन में निम्नोक्त बातों का विशेष विचार किया है : विहार का समय, विहार करने के पूर्व गच्छ के निवास एवं निर्वाहयोग्य क्षेत्र का परीक्षण, उत्सगं तथा अपवाद की दृष्टि से योग्य-अयोग्य क्षेत्रप्रत्युपेक्षकों का निर्वाचन क्षेत्र की प्रतिलेखना के निमित्त गमनागमन की विधि, विहार-मार्ग एवं स्थण्डिलभूमि, जल, विश्रामस्थान, भिक्षा, वसति, सम्भवित उपद्रव आदि की परीक्षा, प्रतिलेखनीय क्षेत्र में प्रवेश करने की विधि, भिक्षाचर्या द्वारा उस क्षेत्र के निवासियों की मनोवृत्ति की परीक्षा, भिक्षा, औषध आदि की सुलभता - दुर्लभता का ज्ञान,
विहार करने के पूर्व वसति के स्वामी की अनुमति विहार करते समय शुभ शकुन - दर्शन, विहार के समय आचार्य, बालदीक्षित, वृद्धसाधु आदि का सामान ( उपधि ) ग्रहण करने की विधि, प्रतिलिखित क्षेत्र में प्रवेश एवं शुभाशुभ शकुनदर्शन, वसति में प्रवेश करने की विधि, वसति में प्रविष्ट होने के बाद आचार्य आदि का जिनचैत्यों के वन्दन के निमित्त गमन, मार्ग में गृह- जिनमंदिरों के दर्शन, स्थापनाकुलों की व्यवस्था, स्थापनाकुलों में जाने योग्य अथवा भेजने योग्य वैयावृत्यकार के गुण-दोष की परीक्षा, स्थापनाकूलों में से विधिपूर्वक
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