Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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( ३०)
गाथा सं.
पृष्ठ सं.
विषय
२०७-२०९ |१७० - १७१ | उत्कृष्टादि प्रदेशअन्धके सादि इत्यादि भेद २१०-२१७ ११७२-१७७ | उत्कृष्ट व जघन्यप्रदेश स्वामी - arart 4 सुहास
र २१८-२२२ | १७९-१८१ | योगका स्वरूप, उपपादयोग, परिणामयोग, एकान्तानुवृद्धियो। २२३-२२७ | १८२-१.८४ | योगस्थानोंकी संख्या तथा अवयव, उनका स्वरूप व संख्या २२८
| प्रश्रमवाणा, चय, वर्गणा (निषेक) सम्बन्धी अनसन्दृष्टि २२९ |१८५ प्रत्येक स्पर्धककी प्रथमवर्गणादिके एकवर्गमें अविभागप्रतिच्छेद तथा योग-स्थानों में वृद्धि
आदि विशेषकथन है २३०-२३१ ।११०-१९५ | अंगुलके असंख्यातवेंभागमात्र अधन्यस्पर्धकों के बढ़ने पर द्वितीययोगस्थान होता है। इतनी
| वृद्धिसे चरमस्पर्धक के आगे अपूर्व स्पर्धक नहीं होता, किन्तु श्रेणि के
असंख्यातवेंभागप्रमाणस्थान चढ़नेपर अपूर्वस्पर्धक होता है। २३२-२४० १९३-१९४ | चौदह जीवसमा में उपपाद एकांतानुवृद्धि परिणामयोगके जघन्य व उत्कृष्ट इसप्रकार ८४
स्थानोंमें अल्पाबहुल्लका कधन २४१
| १४ जीवरसमाससम्बन्धी ८४ स्थानों में पूर्व-पूर्वके स्थानसे उन्नरवतीस्थान पल्य के
असंख्यातवेभार गुणा है। २४२
उपपादयोगस्थान व एकान्तानुवृद्धियोगस्थान व परिणामयोगस्थानका काल
परिणायोगस्थानोंका कालकी अपेक्षा अल्पबहुत्व व यवमध्य २४४-२४६ १९९ व्रत परिणामयोगस्थानों में जोवों का परिणाम, जीव यवमध्य २४७-२४९ २०३-२०४ | द्रव्य (अस जीवों) का योग अध्वान, नानागुणहानि, गुणहानिका प्रमाण २५०
| योगवृद्धिसे समयप्रबद्धकी वृद्धिका प्रमाण २५१-२५६ | २०७-२०९ जघन्ययोनस्थानसे उत्कृष्ट बोगस्थानटक वृद्धिका क्रम, योगस्थानोंका प्रमाण २५७
प्रकृति आदि बन्धके कारण |२०९-२१५ | योगस्थान, प्रकृत्भेिद, स्थितिभेद, स्थितिबन्धाध्यवसायस्थान २६०२१८ अनुभागबन्धाध्यवसायस्थान, कर्मप्रदशोंका अल्पबहुल्व
।। इतिप्रदेशबन्ध प्रकरण ।।
उदयप्रकरण २६१-२६२ २२६ आहारक, तीर्थंकर, मिश्र, सम्यक्त्वप्रकृति व आनुपूर्वी उदयसम्बन्धी नियम
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