Book Title: Gommatasara Karma kanda
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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(२८)
गाथा सं.
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पृष्ठ सं. ।
विषय
स्थिति
| १०२ आटकोका उत्कृष्टस्थितिबन्ध १२८-१३४ १०३-५०४ | उत्तरप्रकृतियोंका उत्कृष्टस्थितिबन्ध १३५-५३८ १५०४-१.०५ | उत्कृष्टस्थितिबन्धके स्वामी
| मूलप्रकृतियोंका जघन्यस्थितिबन्ध १४०-५४३ । १०६-१०७ | उनरप्रकृतियांका जघन्यस्थितिबन्ध १४४-१४५ | ५५३ एकेन्द्रिय व विकलत्रय जीवोंका स्थितिबन्ध ५४६-५४७
| आबाधाकाल व आवाधाकाण्डक १४८
चोदह जीवसमासों में उत्कृष्ट व जधन्यस्थितिक भेद १४२
| सूक्ष्म-बादर, पर्या-अपर्याप्त एकेन्द्रियादि जीवांकी उत्कृष्ट व जयन्यस्थितिका शलाक द्वारा कथन
संज्ञी पयांप्त-अपर्याप्त जीवोंकी उत्कृष्ट व जधन्यस्थिति १२४
जघन्यस्थितिबन्धके स्वामी १५२-१५३ | १२४-५२५ अधन्यस्थिति मादि इत्यादि चारभेद १५४
तीन (मनुष्य-तिर्यंच व देव) आधुके अतिरिक्त शेष शुभ व अशुभकर्मोंका स्थितिबन्ध | अशुभ है।
आवाधाका लक्षण
| मूल व उत्तर प्रकृतियाकी आबाधा १९४-९१६ ७७१-७७२
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१५८, ९१७ | १२८, 5७२ आयुकर्मका आवाधा ५५९, ९५८. १२९ उदीरणाकी अपेक्षा आबाधाकाल। प्रभवसंबन्धा आयुकी उदारणा नहीं होतो १६०-१६२ | १३०-१३१ भिषेकरचना व चय प्राप्त करनको विधि आदिका कथन
९१९-९४०
१७४-७८८
॥ इति स्थितिबन्धप्रकरण ।।